पहाड़ों में कुदरत की विनाशलीला का इससे डरावना मंजर शायद ही कभी किसी ने देखा हो. लेकिन जिस तरह से राहत के काम में हो रही देरी को लेकर लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है, इसका अंदाजा देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को भी है.
शनिवार सुबह गृहमंत्री बाढ़ प्रभावित उत्तराखंड का दौरा करने के लिए देहरादून पहुंचे. आनन-फानन में राहत और बचाव के काम पर समीक्षा करने के लिए मीटिंग बुलाई. शिंदे जब मीडिया से रूबरू हुए तो उन्होंने माना कि राहत के काम में लगी एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी है. इस कमी को दूर करने के लिए यह बैठक की गई.
गृहमंत्री ने जानकारी दी कि उत्तराखंड में अब भी 40 हजार लोग फंसे हैं. गृह मंत्री शिंदे ने कुदरत के इस कहर को राष्ट्र के सबसे बड़ा संकट बताया.
भारी बारिश की वजह से आई इस त्रासदी के बाद जारी बचाव अभियानों की समीक्षा के लिए देहरादून पहुंचे शिंदे ने इसे ‘राष्ट्रीय संकट’ करार दिया और फंसे हुए लोगों को बाहर निकालने के काम में लगी एजेंसियों के लिए तीन दिन की समयसीमा निर्धारित की है.
उन्होंने कहा कि खराब मौसम की वजह से सुरक्षा बलों को बचाव अभियान में पेश आ रही दिक्कतों के बावजूद, फंसे हुए लोगों को निकालने का काम युद्धस्तर पर चलाया रहा है.
राज्य के सचिवालय में मुख्यमंत्री सहित दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों के साथ हुई बैठक के बाद शिंदे ने कहा कि फंसे हुए लोगों को बचाने के लिए बद्रीनाथ से पंडुकेश्वर और केदारनाथ के बीच पैदल पुल बनाए जा रहे हैं.
जंगलछत्ती इलाके में फंसे लोगों को प्राथमिकता के आधार पर सुरक्षा बलों द्वारा तत्काल राहत प्रदान की जा रही है.
गृह मंत्री ने बचाव अभियान में लगी विभिन्न सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी की बात को स्वीकारते हुए कहा कि बचाव कार्यों के समन्वय और निगरानी के लिए आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ वी के दुग्गल को यहां तैनात किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार बचाव कार्यों पर निगाह बनाए हुए है, हालांकि उन्होंने साफ किया कि यह कोई मानव निर्मित त्रासदी नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक आपदा है.
शिंदे ने कहा कि कुछ जगहों से बरामद हुए शव इतने खराब हो चुके हैं कि उन्हें पहचान पाना तक मुश्किल है. इसके साथ उन्होंने बताया कि मृतकों की पहचान के लिए उनका डीएनए संरक्षित किया जाएगा.