‘लैला’ का मतलब फारसी में होता है स्याह बालों वाली सुंदरी या रात. कई लोगों के मन में यह सवाल उठा होगा कि आंध्रप्रदेश के तटीय हिस्सों में तबाही मचाने वाले तूफान का नाम ‘लैला’ कैसे पड़ा. शायद इसका जवाब पाकिस्तान के पास है.
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के एक अधिकारी ने बताया कि जब विश्व मौसम संगठन ने आईएमडी को हिन्द महासागर में आने वाले तूफानों पर नजर रखने और उसका नाम रखने की जिम्मेदारी सौंपी तो पाकिस्तान ने आईएमडी को ‘लैला’ नाम सुझाया.
मौसम वैज्ञानिकों ने आसानी से पहचान करने और तूफान के तंत्र का विश्लेषण करने के लिए उनके नाम रखने की परंपरा शुरू की. अब तूफानों के नाम विश्व मौसम संगठन द्वारा तैयार प्रक्रिया के अनुसार रखे जाते हैं.
अधिकारी ने बताया कि बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के ऊपर बनने वाले तूफानों के नाम 2004 से रखे जाने लगे.
क्षेत्रीय विशेषीकृत मौसम केंद्र होने की वजह से आईएमडी भारत के अलावा सात अन्य देशों बांग्लादेश, मालदीव, म्यामां, ओमान, पाकिस्तान, थाईलैंड तथा श्रीलंका को मौसम संबंधी परामर्श जारी करता है.
अधिकारी के अनुसार, आईएमडी ने इन देशों से भी तूफानों के लिए नाम सुझाने को कहा. इन देशों ने अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम के अनुसार नामों की सूची दी.{mospagebreak}पूर्वानुमान और चेतावनी जारी करने की खातिर विशिष्ट पहचान देने के उद्देश्य से 64 नाम सुझाए गए जिनमें से अब तक 22 का उपयोग किया गया है. चक्र के अनुसार, इस तूफान के लिए ‘लैला’ नाम पाकिस्तान ने सुझाया था. अगले तूफान का नाम ‘‘बांदू’’ होगा जिसका सुझाव श्रीलंका ने दिया था.
मुख्य उत्तरी हिंद महासागर उष्ण कटिबंधीय मौसम मई से नवंबर तक रहता है और इस मौसम का पहला तूफान नरगिस था.
तूफानों का नाम रखने की परंपरा 20 सदी के शुरू से चल रही है जब एक आस्ट्रेलियाई विशेषज्ञ ने उन राजनीतिज्ञों के नाम पर बड़े तूफानों के नाम रखे जिन्हें वह पसंद नहीं करता था.
अमेरिकी मौसम विभाग ने 1953 से तूफानों के नाम रखने शुरू किये. उप महाद्वीप में यह चलन 2004 से शुरू हुआ.
अधिकारी ने बताया कि नाम रखे जाने से मौसम विशेषज्ञों की, एक ही समय में किसी बेसिन पर एक से अधिक तूफानों के सक्रिय होने पर, भ्रम की स्थिति भी दूर हो गई.
हर साल विनाशकारी तूफानों के नाम बदल दिए जाते हैं और पुराने नामों की जगह नए नाम रखे जाते हैं.