देश के अलग-अलग कोने में आई विनाशकारी बाढ़ ने जमकर तबाही मचाई है, लेकिन इस आपदा का असर सबसे ज्यादा उत्तर-पूर्वी राज्य असम में हुआ है. असम के 28 जिले और 15 लाख की आबादी बाढ़ का कहर झेलने को मजबूर है. असम का लखीमपुर जिला सबसे ज्यादा तबाह हुआ है. लखीमपुर में अरुणाचल से आने वाली नदियों ने ऐसा तांडव मचाया है कि 2 लाख से ज्यादा जिंदगियां इसकी चपेट में आ गईं हैं. अकेले लखीमपुर में बाढ़ की वजह से 10 लोगों की मौत हो गई है. आज तक की टीम ने वहां पहुंचने पर पाया कि बाढ़ ने वहां इस कदर तबाही मचायी है कि क्या गांव, क्या घर, क्या खेत और क्या सड़क, सब कुछ मिट्टी की तरह बह गया है. 10 जुलाई का दिन लखीमपुर के लिए बड़ा मनहूस रहा.
अरुणाचल प्रदेश में निपको बांध से छोड़ा गया पानी रंगा नदी के रास्ते लखीमपुर पहुंचा और सैलाब ने ऐसा शोर मचाया कि आज लखीमपुर में सन्नाटा पसरा हुआ है. रंगा नदी में अरुणाचल से आए सैलाब से नौबीशा में नदी के किनारे बने ऊंचे तटबंध और उसके ऊपर बनी सड़क का 200 मीटर का पूरा हिस्सा बह गया. इस भयावह कटाव के बाद रंगा नदी ने अपनी दिशा बदल दी जिसके बाद इलाके की दशा ही बदल गई.
स्थानीय भाषा में रंगा का मतलब लाल होता है यानी खतरे का निशान. इस नदी ने अपने नाम को सार्थक कर दिया है. गांव के गांव उजड़ गए और लोग बेघर हो गए. लोग बचे-खुचे ऊंचे ठिकानों पर रुके हैं. कई परिवार लोगों के घर का सामान और मवेशियों को लेकर दूसरे किनारों पर चले गए हैं. वे अब गुजारे के लिए सरकारी मदद पर निर्भर हैं. कई लोग तिरपाल के सहारे रात काट रहे हैं. जिंदगी किसी-किसी तरह बीत रही है. लोगों को दाल-रोटी तो मिल गई है लेकिन जिंदगी की रफ्तार थम गई है. वहां रहने वाले प्रदीप कहते हैं कि हर तीसरे दिन राहत सामग्री तो मिल जा रही है लेकिन बिजली नहीं है. लोग सोलर लाइट के दम पर जिंदगी गुजर-बसर करने को मजबूर हैं.
रंगा नदी अब नौबिशा के उजनीखमती गांव जैसे 4 गांव के बीच से होकर गुजरती है. घरों में 5 फीट तक घुसा पानी अब कम होने लगा है. गांव वालों को अभी भी वह मंजर याद है जब रंगा नदी ने अपना कहर बरपाया था. विशिष्ट कहते हैं कि जब बाढ़ आई थी तो पानी घर के भीतर घुस गया था. पानी भले ही कम हो गया हो लेकिन सरकारी मदद अभी दूर है. विशिष्ट कहते हैं कि जब सरकारी गाड़ी राहत सामग्री लेकर पहुंचती है तो बहाव वाले क्षेत्र में मदद पहुंचने में देर होती है.
कच्ची सड़कों पर नदी का कब्जा है. धार की दूसरी तरफ 4 गांवों ओजनीखमती, बोगलीजान, हतीलांग, बोलागुरी की ढाई सौ जिंदगियां इस बहती धारा को पार करने पर मजबूर हैं. चारों तरफ अनिश्चितता का माहौल है. सौदान (राजन) की बीवी और छोटा बच्चा इस विभीषिका का शिकार हो गए. इस बाढ़ ने राजन से उनका परिवार छिन गया.
लखीमपुर के असिस्टेंट कमिश्नर उत्पल भूयान ने आज तक से बातचीत में कहा, "10 जुलाई को बाढ़ शुरू हुई जिसके चलते लखीमपुर में 10 लोगों की मौत हो गई और लगभग 450 सौ गांव प्रभावित हुए. राजन की भी पत्नी और बच्चे की मौत हो गई लेकिन बच्चे का शव अभी नहीं मिला है. राजन को सरकार द्वारा घोषित मुआवजा मिल चुका है. वे कहते हैं कि प्रशासन अपनी सारी कोशिशें कर रहा है और जहां जहां पर पानी जमा है वहां लोगों को राहत सामग्री पहुंचाई जा रही है.
सर्कल अधिकारी अनिरुद्ध राय कहते हैं कि नदी द्वारा अपनी दिशा बदलने और तटबंध तोड़ने के चलते इस इलाके में यह विनाशकारी बाढ़ आई है. खेतों के ऊपर नावें चल रही हैं. गांव के बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं अपनी जान जोखिम में डालकर अपने गंतव्य तक जाने की जद्दोजहद कर रहे हैं.
एसडीआरएफ की टीम बड़े बुजुर्गों और मरीजों की मदद में लगी है. बुजुर्गों और रोगियों को गांव से निकालकर किनारे पहुंचाया जा रहा है जहां से उन्हें इलाज के लिए आगे भेजा जा रहा है. एसडीआरएफ रेस्क्यू टीम के सदस्य गौरी कहते हैं कि वह गांव में फंसे हुए बुजुर्गों और मरीजों को बाहर से निकाल कर किनारे पर पहुंचाने में मदद करते हैं जिससे उनका इलाज हो सके. इतना ही नहीं एसडीआरएफ की टीम फंसे हुए जानवरों को भी निकालकर मदद पहुंचाने की कोशिश कर रही है.
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में 100 गांवों का संपर्क टूटा
ऐसा नहीं है कि बाढ़ की विभीषिका से सिर्फ पूर्वोत्तर भारत ही परेशान है. इस बीच महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में पिछले 12 घंटे की बारिश की वजह से कई गांव और तहसीलों से संपर्क टूट गया है. भामरागढ़ तहसील से लगी हुई पर्लकोटा नदी में पानी के बहाव की वजह से 60-70 गांव संपर्क से कट गए हैं. कुंहड़ा में तालाब टूटने की वजह से यातायात में दिक्कतें आ रही हैं. भामरागढ़ और चामोर्शी तहसील में क्रमश: 305 मि.मि और 519 मि.मि बारिश हुई है. आष्टी से गढ़चिरौली मार्ग पर पानी बहने की वजह से संपर्क टूट गया है. ऐसे में लगभग 100 गांव जिले से पूरी तरह कट चुके हैं.