बिहार में फिर से पकड़ बनाने को बेताब आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद ने लोकसभा चुनाव के लिए सीटों का बंटवारा कर लिया है, लेकिन यह उनके शुरुआती आकलन के मुताबिक नहीं हो पाया. वह बिहार में तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों का एक गठबंधन तैयार करने के प्रयास में हैं.
इस बार हालत 2009 के विपरीत है, जब लालू प्रसाद अन्य पार्टियों के नेताओं को कुछ नहीं ससझते थे और अपनी शर्तों पर चुनाव लड़वाते थे. इस बार यह सोचकर कि आरजेडी, कांग्रेस, लोजपा और एनसीपी जैसी पार्टियों के साथ मिलकर वह नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार को जबर्दस्त टक्कर देंगे, उन्होंने यह गठबंधन तैयार किया. इसके लिए वह काफी झुक भी गए हैं.
बताया जाता है कि 9 सालों तक सत्ता से बाहर रहने के बाद लालू प्रसाद की सोच में बड़ा बदलाव आया है और वह बिहार की 40 सीटों में से आधी अन्य सहयोगी पार्टियों को देने को तैयार हैं. वह इस गठबंधन को मजबूती प्रदान करने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं. उन्होंने कांग्रेस को 10 सीटें देने की पेशकश की है. 2009 में तो लालू ने उसे सिर्फ 4 सीटें देने की पेशकश की थी, उसके बाद कांग्रेस ने अकेले ही चुनाव लड़ा था.
लेकिन बदलते हुए वक्त ने लालू प्रसाद को नम्र बना दिया है और वह अब पहले जैसे अहंकार में डूबे हुए नेता नहीं हैं. अब तो वह रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा को भी 8 सीटें देने को तैयार हैं, जो जेडीयू की तरफ देख रहे थे. वह ऐसा इसलिए कर रहे हैं, ताकि मुस्लिम वोट बंट न जाए. पासवान का मुस्लिम समुदाय पर अच्छा प्रभाव है. दिलचस्प बात यह है कि लालू की पार्टी के कुछ नेता यह कह रहे हैं कि उन्हें सहयोगियों के लिए इतनी सीटें नहीं छोड़नी चाहिए.
लालू प्रसाद को यकीन है कि आरजेडी, लोजपा और कांग्रेस मिलकर मोदी और नीतीश को जबर्दस्त टक्कर देंगे. इसके लिए ही वह ज्यादा से ज्यादा सीटें छोड़ने को तैयार हो गए हैं.