देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आंखों में आंसू लाने वाले कवि प्रदीप के गीत ‘ए मेरे वतन के लोगो’ को पहले डुएट के तौर पर लता मंगेशकर और उनकी बहन आशा भोसले को गाना था, यह बात शायद आपको नहीं पता होगी.
लेकिन एक नयी पुस्तक में इस बात का खुलासा किया गया है कि गीत को संगीतबद्ध करने वाले सी. रामचंद्र से लता का तालमेल अच्छा नहीं था और उन्होंने केवल एक ही शर्त पर इस गीत को आवाज दी थी कि वह इसे सोलो रिकार्ड करेंगी.
राजू भारतन ने अपनी नयी पुस्तक ‘ए जर्नी डाउन मेलोडी लेन’ में लिखा है, ‘सी. रामचंद्र ने पहले ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ को डुएट के हिसाब से सोचा था..तब तक लता और सी. रामचंद्र के बीच शर्तों में बातचीत नहीं थी. कवि प्रदीप ने उनमें सामंजस्य कराया.’ उन्होंने कहा, ‘यह संयोग हुआ जब लता अनपेक्षित तरीके से सुबह छह बजे प्रदीप के विले पार्ले स्थित आवास पर ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’ गाने की इच्छा जताने पहुंच गयीं बशर्त उन्हें यह गाना अकेले गाने दिया जाए.’
भारतन के मुताबिक आशा ने भी गीत के लिए इसके संगीतकार के साथ रियाज किया था लेकिन जब लता ने इसे अकेले रिकार्ड करने पर जोर दिया तो आशा पीछे हट गयीं.
इस गीत ने चीन से 1962 के युद्ध के बाद देश में संवेदना की एक लहर पैदा कर दी थी और नेहरू इस गीत से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने लता को गले लगा लिया. दोनों बहनों के बारे में भारतन ने कहा कि ओपी नैयर एक मात्र ऐसे संगीतकार थे जो उस वक्त लता से दूर रहे जबकि अन्य संगीतकार अपने गीतों को लता की आवाज में स्वरबद्ध करना चाहते थे.
पुस्तक कहती है कि नैयर ने न केवल लता का विरोध किया बल्कि प्रतिद्वंद्वी के तौर पर आशा को तैयार किया और दोनों ने नौ साल तक साथ में काम किया.
ओपी नैयर और लता के बीच टकराव उस समय शुरू हआ जब इस मशहूर गायिका ने 1954 में फिल्म ‘महबूबा’ में अपने पसंदीदा निर्देशक को बदले जाने पर नैयर का विरोध किया.
ओपी और आशा की जोड़ी ने ‘ये है रेशमी जुल्फों का अंधेरा’, ‘जाईए आप कहां जाएंगे’ और ‘इशारों इशारों में दिल लेने वालों’ जैसे गीत दिये लेकिन बाद में अलग हो गये.
बाद में आशा ने आरडी बर्मन के संगीत निर्देशन में काम करके अलग पहचान बनाई और बाद में उन्हीं से शादी भी की.