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'एक देश एक चुनाव' के लिए विधि आयोग का मंथन शुरू, जारी की प्रश्नावली

आयोग का मानना है कि इसे अमलीजामा पहनाने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करने पर विचार होगा. आयोग चाहता है कि 'एकसाथ चुनाव' की परिभाषा तय की जाए. इस परिभाषा में शामिल करने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 2 में संशोधन का प्रस्ताव आयोग ने किया है.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

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विधि आयोग ने देश में एक साथ चुनाव पर विचार करना शुरू कर दिया है. आयोग ने पहली बैठक में जनता और नामचीन लोगों से इस मुद्दे पर सुझाव की अपेक्षा करते हुए प्रश्नावली जारी कर दी है.

आयोग का मानना है कि इसे अमलीजामा पहनाने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करने पर विचार होगा. आयोग चाहता है कि 'एकसाथ चुनाव' की परिभाषा तय की जाए. इस परिभाषा में शामिल करने के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 2 में संशोधन का प्रस्ताव आयोग ने किया है.

अविश्वास प्रस्ताव की जगह तर्कसाध्य वोट के साथ अविश्वास प्रस्ताव के रूप एक नई व्याख्या शामिल करना भी आयोग के विचारों के दायरे में होगा.

आयोग का मानना है कि इसके लिए लोकसभा नियमावली में धारा 198A जोड़ी जा सकती है. ऐसा ही नियम राज्य की विधानसभा नियमावली में भी जोड़ा जा सकता है.

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देशभर के विचार करने के लिए आयोग की पेशकश है कि त्रिशंकु विधानसभा या लोकसभा की स्थिति में दलबदल कानून के पैराग्राफ 2 (1)(ब) को अपवाद मानने का संशोधन किया जाए.

संविधान के अनुच्छेद 83 और 172 के साथ ही जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धाराएं 14 और 15 में संशोधन कर लोकसभा और विधानसभा के मध्यावधि चुनाव सिर्फ बची हुई अवधि के लिए शासन संभालने के लिए करने का प्रावधान कराया जा सकता है.

केंद्र सरकार राज्यों के बहुमत से इन संशोधन प्रस्तावों पर सहमति ले सकती है ताकि भविष्य में किसी भी तरह की कानूनी चुनौतियों के चक्कर से बचा जा सके. इतना ही नहीं, स्थायी सरकार के लिए एक और व्यवस्था की जा सकती है कि लोकसभा या विधानसभा के स्पीकर की तरह सदन में सबसे बड़ी पार्टी के नुमाइंदे को मुख्यमंत्री चुना जाए! ताकि रोज रोज होने वाला रणनीतिक क्लेश खत्म किया जा सके.

जनता को इस प्रश्नावली या इससे अलग भी सुझाव देने का अधिकार है.

सरकारी पेशकश को नकारा

दूसरी ओर, अदालती आदेश या मर्यादा की अवमानना पर सरकारी पेशकश को विधि आयोग ने सिरे से नकार दिया है. सरकार अदालती अवमानना को सिर्फ अदालती कार्रवाई और कार्रवाई तक ही सीमित रखने के हक में थी, लेकिन अदालत की तो छोड़िए विधि आयोग तक ने सरकार की बात को दरकिनार कर दिया. विधि आयोग ने अदालतों की अवमानना को अदालतों तक ही सीमित रखने के मसले पर सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी. सरकार ने विधि आयोग से न्यायलय की अवमानना का कानून में जो परिभाषा है, उसमे संशोधन और उसको सीमित करने के बारे में राय मांगी थी.

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