अंदेशा तो हफ्तेभर से था, पर अश्विनी कुमार का इस्तीफा अंजाम तक शुक्रवार की रात पहुंचा. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से उनके आवास 7 आरसीआर पर मुलाकात के बाद अश्विनी कुमार ने इस्तीफा दे दिया.
लाखों-करोड़ के कोयला घोटाले में सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट में बदलाव कराना कानून मंत्री को महंगा पड़ा. इसी साल 8 मार्च को कोयला घोटाले में सीबीआई को एक हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में पेश किया जाना था. कहीं वो हलफनामा सरकार के गले की हड्डी ना बन जाए, इसलिए उससे पहले ही चार दौर की ऐसी हाइप्रोफाइल बैठकें हुईं, जिसमें से दो में खुद कानून मंत्री मौजूद थे.
इसी साल फरवरी में एक दिन कानून मंत्री अश्विनी कुमार, अटॉर्नी जनरल जी ई वाहनवती, सीबाई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा और तत्कालीन एडिश्नल सॉलिसीटर जनरल हरिन रावल की एक गुप्त बैठक कानून मंत्री के दप्तर में हुई. सुप्रीम कोर्ट ने 24 जनवरी को कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में सीबीआई जांच पर स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी. उस बैठक में तय किया गया कि मामले को गुप्त रखने के लिए सीबीआई की रिपोर्ट को हलफनामे के रूप में भेजने की जगह एक सीलबंद लिफाफे में पेश किया जाएगा. लेकिन कानून से खिलवाड़ करने में कानून मंत्री इतने पर नहीं रुके.
6 मार्च को कानून मंत्री के दफ्तर में एक बार फिर कानून मंत्री अश्विनी कुमार, अटॉर्नी जनरल जी ई वाहनवती, सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा, तत्कालीन एडिश्नल सॉलिसीटर जनरल हरिन रावल, सीबीआई के ज्वाइंट सेक्रेट्री ओ पी गलहोत्रा और सीबीआई के डीआईजी रविकांत की बैठक हुई. अश्विनी कुमार ने वहां स्टेटस रिपोर्ट में कुछ बदलाव के सुझाव दिए. मंत्रीजी का हुक्म मानते हुए स्टेटस रिपोर्ट से स्क्रीनिंग कमेटी के कुछ चार्ट हटा दिए गए.
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सरकार को कड़ी फटकार लगायी. कांग्रेस और सरकार पहले तो अश्विनी कुमार का बचाव करते रहे, लेकिन पानी सिर के ऊपर जा पहुंचा, तो मंत्रीजी की कुर्सी की कुर्बानी लेनी पड़ी.
मनमोहन सिंह के बेहद करीबी माने जाते हैं पवन कुमार बंसल और अश्विनी कुमार लेकिन इत्तफाक देखिए कि प्रधानमंत्री के दोनों करीबी मंत्रियों को एक साथ जाना पड़ा.