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न्यायपालिका पर बोले कानून मंत्री, सरकार चलाने का काम हम पर छोड़ दें

रविशंकर प्रसाद ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे, जिसमें मानवाधिकार आयोग के प्रमुख और भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू भी मंच पर मौजूद थे.

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फाइल फोटो।
फाइल फोटो।

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केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने न्यायपालिका से अपील की है कि सरकार कैसे चलाई जाए यह फैसला वह चुने हुए लोगों पर छोड़ दे. रविशंकर का कहना है कि राज चलाने के लिए और कानून बनाने के लिए ही जनता सरकार को चुनती है. रविशंकर प्रसाद ने शिकायती लहजे में कहा कि हाल फिलहाल में ऐसा लगता है कि सरकार के कामकाज में न्यायपालिका का दखल बढ़ता ही जा रहा है.

रविशंकर प्रसाद ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे, जिसमें मानवाधिकार आयोग के प्रमुख और भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू भी मंच पर मौजूद थे. रविशंकर प्रसाद ने कहा कि भारत के संविधान में शासन व्यवस्था कैसे चलाई जाए और किसकी क्या जिम्मेदारी है यह बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट किया गया है, लेकिन अधिकारों के साथ संविधान ने सबकी जवाबदेही भी तय की है.

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उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को मनमाने तरीके से बनाए गए कानून को रद्द करने का अधिकार है और गड़बड़ी करने वाले राजनेताओं को सजा देने का अधिकार भी है. हालांकि शासन चलाने का काम उन लोगों पर छोड़ देना चाहिए, जिन्हें जनता ने इसके लिए चुना है क्योंकि यही निर्वाचित सरकारों का काम भी है. उन्होंने कहा कि शासन करने के अधिकार के साथ सरकार की जवाबदेही भी है और उसे संसद विधानसभा से लेकर मीडिया के सामने जवाब देना होता है.

रविशंकर प्रसाद ने कहा कि लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए न्यायपालिका की अहम भूमिका है और उसका वह पूरा सम्मान करते हैं. लेकिन सबको अपना-अपना काम ही करना चाहिए. इस दौरान कानून मंत्री ने कहा कि उन्हें यह बात इसलिए कहनी पड़ रही है, क्योंकि हाल के दिनों में ऐसा देखा गया है कि जैसे कुछ अदालतें शासन का काम अपने हाथ में लेना चाहती हैं और यह कैसा मुद्दा है जिस पर विचार किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि शासन के साथ जवाबदेही जुड़ी हुई है और कोई बिना जवाबदेही के शासन करना चाहे यह नहीं हो सकता. हाल ही में रोहिंग्या मुसलमानों के मामले पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि रोहिंग्या मुसलमानों की समस्या से कैसे निपटना है कि एक नीतिगत फैसला है जिसे कोर्ट को सरकार पर छोड़ देना चाहिए.

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