scorecardresearch
 

लक्ष्मीकांत पारसेकर बने गोवा के नए मुख्यमंत्री, डिप्टी सीएम डिसूजा की नहीं चली

मनोहर पर्रिकर के इस्तीफे के बाद लक्ष्मीकांत पारसेकर गोवा के नए मुख्यमंत्री बन गए हैं. गोवा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे पारसेकर ने शनिवार को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. पारसेकर के अलावा 12 मंत्रियों को भी शपथ दिलाई गई.

Advertisement
X
शपथ ग्रहण करते लक्ष्मीकांत पारसेकर
शपथ ग्रहण करते लक्ष्मीकांत पारसेकर

मनोहर पर्रिकर के इस्तीफे के बाद लक्ष्मीकांत पारसेकर गोवा के नए मुख्यमंत्री बन गए हैं. गोवा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे पारसेकर ने शनिवार को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. पारसेकर के अलावा 12 मंत्रियों को भी शपथ दिलाई गई. गोवा बीजेपी में असंतोष!

Advertisement

उपमुख्यमंत्री डिसूजा ने किया नाम का अनुमोदन
पार्टी विधायकों की बैठक में लक्ष्मीकांत पारसेकर का नाम पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने प्रस्तावित किया था. खास बात यह रही कि उनके नाम का अनुमोदन उपमुख्यमंत्री फ्रांसिस डिसूजा ने ही किया. इससे पहले डिसूजा ने बयान दिया था कि वे किसी जूनियर के अधीन काम नहीं करेंगे. शुक्रवार को सीएम पद के लिए अपनी दावेदारी पेश करते डिसूजा ने चेतावनी भरे लहजे में कहा था कि किसी और का नाम आने पर वे अपने पद से इस्तीफा दे देंगे. आख‍िरकार डिसूजा की नहीं चल सकी.

पारसेकर का संघ से है पुराना नाता
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मजबूत पृष्ठभूमि वाले 58 वर्षीय पारसेकर राजनीतिक रूप से अस्थिर इस राज्य के 22 वें मुख्यमंत्री हैं तथा इस पद आसीन होने वाले 12 वें शख्स हैं. मुख्यमंत्री के पद के लिए उनकी उम्मीदवारी को बीजेपी की निर्णय लेने वाली सबसे बड़ी इकाई संसदीय बोर्ड ने भी मंजूरी दे दी थी. पारसेकर उन नेताओं में शुमार हैं, जिन्होंने गोवा में बीजेपी की नींव रखी थी. आरएसएस से उनका पुराना नाता रहा है. कहा जा रहा है कि सीएम पद तक पहुंचने में उन्हें इस बात का भी फायदा मिला.

Advertisement

मनोहर पर्रिकर बनेंगे रक्षा मंत्री
गोवा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले मनोहर पर्रिकर केंद्र में अपनी सेवाएं देंगे. उनका रक्षा मंत्री बनना तय है. रविवार दोपहर केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार होने वाला है.

लक्ष्मीकांत पारसेकर का अब तक का सफर...
महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के कट्टर समर्थक रहे अपने परिवार के खिलाफ विद्रोह करके 1988 में बीजेपी के टिकट पर पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने वाले लक्ष्मीकांत पारसेकर को पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा का प्रतिफल गोवा के मुख्यमंत्री की कुर्सी के रूप में मिला है.

विद्रोही कहे जाने वाले पारसेकर ने 1980 के दशक में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी. लेकिन उन्होंने जो मार्ग चुना था, उसे उनके परिवार ने बिल्कुल खारिज कर दिया था. उन्होंने 1988 में बीजेपी प्रत्याशी के रूप में मंड्रेम विधानसभा सीट से पहली बार चुनाव लड़ा था. उनका कृषक परिवार उस समय राजनीतिक रूप से प्रभावशाली क्षेत्रीय दल महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी का कट्टर समर्थक था. वे 1988 के चुनाव में प्रभावशाली नेता रमाकांत खलप के ख‍िलाफ चुनाव मैदार में उतरे थे और हार गए थे.

पारसेकर के बीजेपी प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने के फैसले से उनके परिवार और गांव को झटका-सा लगा. उन दिनों उनके गांव में एमजीपी की कड़ी पकड़ थी और बीजेपी का इस तटीय राज्य में कोई खास वजूद नहीं था.

Advertisement

पारसेकर ने कहा, ‘मैंने करीब-करीब अपना बैग पैक कर लिया था और घर छोड़ दिया था, क्योंकि मेरे परिवार को यह बात हजम नहीं हुई कि मैं महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (MGP) उम्मीदवार रमाकांत खलप के खिलाफ चुनाव लड़ रहा हूं. यह साल 1988 की बात है, जब बीजेपी के बारे में लोगों को बमुश्किल ही कुछ पता था.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे विद्रोही के रूप में देखा जाता था.’ विज्ञान में स्नातोकोत्तर पारसेकर ने शुरुआती दौर में अध्यापन कार्य किया था और वह परनेम तालुका में संघ के स्वयंसेवक के रूप में काम करने लगे थे.

वह 1980 के दशक में बीजेपी के लिए काम करने लगे. उन्होंने पर्रिकर, राजेंद्र अर्लेकर (अब विधानसभाध्यक्ष), तथा केंद्रीय मंत्री श्रीपाद नाइक जैसे बीजेपी के प्रदेश दिग्गज नेताओं के साथ मिलकर पार्टी का जनाधार तैयार करने में अहम भूमिका निभाई.

पर्रिकर सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे पारसेकर ने कहा, ‘मैं 1988 में मंड्रेम सीट से बुरी तरह हार गया. मेरा पूरा परिवार एमजीपी के प्रति समर्पित था. यहां तक एमजीपी उम्मीदवार मेरे पिता का एक ट्रक भी चुनाव प्रचार में इस्तेमाल करते थे.’

---इनपुट भाषा से

Advertisement
Advertisement