राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद का सोमवार को प्रभार संभालने वाले न्यायमूर्ति के. जी. बालाकृष्णन ने नक्सलवाद को एक ‘बेहद जटिल’ मुद्दा करार देते हुए कहा कि इस समस्या से लड़ रहे सुरक्षाकर्मियों के अधिकारों पर ‘उपयुक्त तरीके से विचार’ किया जाना चाहिये.
न्यायमूर्ति बालाकृष्णन ने आयोग के अध्यक्ष का पदभार संभालने के बाद संवाददाताओं से कहा कि पुलिस बल और सुरक्षा एजेंसियों के सदस्य भी इंसान हैं. उनकी जिंदगी भी कीमती है. आम लोगों की ही तरह उन पर भी उपयुक्त तरीके से विचार किया जाना चाहिये. बड़ी तादाद में सुरक्षाकर्मी शहीद हो रहे हैं. उनसे नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे आदिवासियों और पुलिसकर्मियों के मानवाधिकार के बारे में पूछा गया था.
न्यायमूर्ति बालाकृष्णन ने संकेत दिये कि नक्सलवाद की समस्या का संबंध विकास से है. उन्होंने कहा कि ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी और स्थानीय निवासी शिक्षा से वंचित रहते हैं. वहां कोई अस्पताल, कोई सड़क नहीं होती. और ऐसी कई बातें हैं. यह कोई साधारण मुद्दा नहीं है. यह बेहद जटिल मुद्दा है.
मानवाधिकार आयोग के नये अध्यक्ष ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हाल ही में एक वक्तव्य में कहा था कि देश के 200 जिले नक्सलवाद से प्रभावित हैं. क्षमा याचिकाओं, खाप पंचायतों और भोपाल गैस त्रासदी के मामले में आज आये फैसले से जुड़े सवालों पर न्यायमूर्ति बालाकृष्णन ने सतर्कता भरा रुख अपनाया. उन्होंने इन बातों का खंडन कर दिया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पास अधिकार कम हैं.
बालाकृष्णन ने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘एनएचआरसी एक उच्च प्रतिष्ठित संगठन है. मुझे नहीं लगता कि एनएचआरसी के पास शक्तियां कम हैं.’ भोपाल गैस त्रासदी के मामले में अदालती फैसला क्या ‘काफी कम और बहुत देरी से आया है’, इस पर उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. लेकिन इसी के साथ उन्होंने यह भी कहा कि सजा की मात्रा कम है. कानून के तहत नाराज पक्ष पुनरीक्षा याचिका दाखिल कर सकता है. बालाकृष्णन ने कहा, ‘कम सजा भी अपील का एक आधार है.’ उन्होंने कहा कि गैस त्रासदी के बाद ‘सकारात्मक’ यह हुआ कि पर्यावरण संरक्षण कानून को सक्रिय कर दिया गया.
न्यायमूर्ति बालाकृष्णन ने कहा कि गैस रिसाव से प्रभावित लोगों के इलाज के लिये अब भी कई अस्पताल काम कर रहे हैं. इज्जत की खातिर होने वाली हत्याओं के बारे में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के नये प्रमुख ने सिर्फ इतना कहा कि ‘हत्या, हत्या होती है’. उन्होंने इस विवाद पर और कुछ बोलने से इनकार कर दिया.
यह पूछने पर कि क्या मौत की सजा सुनाये जा चुके दोषियों की दया याचिका पर फैसला करने के लिये सरकार की कोई समय सीमा होनी चाहिये, न्यायमूर्ति बालाकृष्णन ने कहा, ‘दया याचिका पर विचार करने के लिये कानून के तहत कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है.’ क्या किसी दोषी को उसकी दया याचिका का निपटारा होने तक इंतजार कराते रहना उसके मानवाधिकार का हनन है, इस पर पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने हल्के अंदाज में कहा कि ‘वे जिंदा हैं. तो आप उन्हें जल्द फांसी देना चाहते हैं. तो क्या इसमें कोई मानवाधिकार हनन नहीं है?’