1947 में भारत बंटवारे के दौरान भड़के दंगों को रोकने के लिए महात्मा गांधी ने ऐतिहासिक उपवास रखा. वह सफल रहे.
दिसंबर 2006 में सिंगूर में टाटा के नैनो प्लांट के खिलाफ ममता बनर्जी ने भूख हड़ताल की और टाटा को वहां से बोरिया बिस्तर समेटना पड़ा. अब पश्चिम बंगाल में ममता की सरकार है.
अगस्त 2011 में जन लोकपाल बिल की मांग करते हुए अन्ना हजारे ने कई दिनों तक अनशन रखा. उन्हें भी आंशिक सफलता मिल गई.
अगस्त 2011 में बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दे पर उपवास रखा, लेकिन पुलिस की कार्रवाई के दौरान उन्हें भागना पड़ा.
जनवरी 2012 में नरेंद्र मोदी ने गोधरा में सांप्रदायिक सौहार्द के लिए 'सद्भावना उपवास' रखा. इसके बाद हुए गुजरात विधानसभा चुनावों में उन्होंने तीसरी बार सरकार बनाई.
अप्रैल 2013 में मुंबई में झुग्गी झोपड़ियां हटाए जाने के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने अनशन रखा और कामयाबी पाई.
दिल्ली में बिजली के बढ़े हुए बिल के खिलाफ अप्रैल 2013 में अरविंद केजरीवाल ने 11 दिनों तक अनशन रखा. इसके नतीजे अभी साफ नहीं हुए हैं, लेकिन केजरीवाल दिल्ली के वोटरों के ज्यादा करीब तो आ ही गए हैं.
जेल में बंद वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख जगनमोहन रेड्डी अकसर भूख हड़ताल का सहारा लेते हैं. आंध्र प्रदेश में उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है.
मणिपुर में इरोम शर्मिला आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट (आफ्स्पा) के खिलाफ नवंबर 2000 से भूख हड़ताल पर हैं. उनकी मांग अभी पूरी नहीं हुई, लेकिन देश भर में वह प्रतिरोध का प्रतीक बन गई हैं.
ऐसे में, क्या हो अगर नरेंद्र मोदी मुजफ्फरनगर दंगों के खिलाफ उपवास करें. यह बस एक मासूम इच्छा है. इसका राजनतिक असर क्या होगा?
जिस दिन मुजफ्फरनगर जला, पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने कहा था, 'गुजरात ही वह प्रदेश है जिसने देश को महात्मा गांधी और सरदार पटेल जैसे महापुरुष दिए और अब इसने देश को 'सरदार' मोदी दे दिया है.'
तो क्या होता अगर गुजरात के मुख्यमंत्री गांधी और सरदार पटेल की तरह व्यवहार करते, जिनका उदाहरण वह जब-तब दिया भी करते हैं...
ऐसा होता तो कई नए राजनीतिक समीकरण और संभावनाएं जन्म लेतीं. उनमें से पांच पेश-ए-नजर.
1. मुजफ्फरनगर में खूनखराबे के बीच मोदी का 'सत्याग्रह' उनकी कमीज से 2002 दंगों के पुराने और भयानक दाग धो सकता था. लगे हाथ मोदी माफी भी मांग लेते तो सोने पर सुहागा होता.
2. मोदी के अनशन से एक झटके में मुलायम सिंह यादव (सपा), राहुल गांधी (कांग्रेस) और नीतीश कुमार (जेडीयू) क्लीन बोल्ड हो जाते. मोदी अचानक सांप्रदायिक नहीं, भाईचारे के प्रतीक बन सकते थे.
3. नफरत के मुकाबले, प्यार आपको हमेशा लोगों के ज्यादा करीब लाता है. ध्रुवीकरण सीमित समय के लिए फायदा दे सकता है, पर लोगों को एकजुट करने से ही आप असल लीडर बनते हैं.
4. मोदी का यह कदम मुसलमानों को बीजेपी की ओर आकर्षित करता. इससे पार्टी को उन नीतियों पर आश्रित न रहना पड़ता, जो मुस्लिमों की हितैषी दिखने के लिए उसे अपनानी पड़ती हैं. मसलन मोदी की रैली में मुसलमानों के लिए ड्रेस कोड तय करना.
5. शायद मोदी के इस कदम से भावुक आडवाणी भी पिघल जाते, जो अब भी उनके नाम पर बार-बार कोपभवन में जा बैठते हैं.