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आडवाणी ने दिया इस्‍तीफा, एनडीए में भूचाल

इसका अंदेशा न नरेंद्र मोदी को रहा होगा, न राजनाथ सिंह को. मगर कल तक उत्साह में झूम रही बीजेपी पर वज्रपात हो चुका है. पार्टी के पिछले लोकसभा चुनावों में पीएम कैंडिडेट रहे, सबसे वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है.

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इसका अंदेशा न नरेंद्र मोदी को रहा होगा, न राजनाथ सिंह को. मगर कल तक उत्साह में झूम रही बीजेपी पर वज्रपात हो चुका है. पार्टी के पिछले लोकसभा चुनावों में पीएम कैंडिडेट रहे, सबसे वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है.

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पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को लिखे खत में आडवाणी ने कहा कि पिछले कुछ समय से मैं अपने आप को पार्टी में सहज नहीं पा रहा हूं. मुझे नहीं लगता कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीन दयाल उपाध्याय और अटल बिहार वाजपेयी ने जिस पार्टी को बनाया, खड़ा किया, ये वही पार्टी है. ये दिशा भटक चुकी है. इसके साथ ही आडवाणी ने कहा कि इस पत्र को मेरा इस्तीफा समझा जाए. आडवाणी ने पार्लियामेंट्री बोर्ड, राष्ट्रीय कार्यकारिणी और चुनाव कमेटी के पदों से इस्तीफा दिया है.हालांकि वह एनडीए के चेयरमैन बने रहेंगे या नहीं, इस पर रुख अभी साफ नहीं है.

उधर एनडीए के संयोजक शरद यादव ने आडवाणी के इस्तीफे पर टिप्पणी करते हुए इशारा किया कि अब उनकी पार्टी एनडीए में बने रहने पर नए सिरे से विचार करेगी. बकौर शरद यादव, ‘हम तो एनडीए में अटल जी और आडवाणी जी के साथ ही जुड़े थे. उन्हीं के साथ और सामने सारे समझौते हुए थे. अब वह नहीं है, तो हमें देखना होगा कि आगे की राह क्या हो.’

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बीजेपी नेतृत्व की आलोचना करते हुए शरद यादव ने कहा कि चुनाव कमेटी का मुखिया कौन बनता है, ये पार्टी का अंदरूनी मामला है, मगर गोवा में नेताओं ने जिस तरह के बयान दिए हैं, वे एनडीए के दर्शन के खिलाफ हैं.

शरद यादव ने कहा कि आगे की रणनीति पर फैसला, सभी सहयोगी दलों से सलाह के बाद ही किया जाएगा.

आडवाणी ने रविवार को अपने ब्लॉग में शर शैय्या पर लेटे भीष्म पितामह का जिक्र किया था. उन्होंने धर्म युद्ध में लगे कृष्ण का भी जिक्र किया था. तब से ही उनके संन्यास लेने के आकलनों का सिलसिला शुरू हो गया था. बताया जा रहा था कि चुनाव प्रचार कमेटी का अध्यक्ष बनने के बाद जल्द ही नरेंद्र मोदी आडवाणी से मिलने दिल्ली आएंगे. राजनाथ सिंह भी आज ही दिल्ली पहुंचे हैं. उन्होंने इस्तीफे की खबर से पहले मतभेदों की बात को नकारा था. मगर अब सब सामने आ गया है.

आडवाणी ने संघ प्रचारक की भूमिका छोड़कर 1957 में जनसंघ का काम संभाला था. तब वह राजस्थान से दिल्ली शिफ्ट हुए थे और बतौर सांसद अटल बिहारी वाजपेयी को मिले निवास में रहते थे. दीनदयाल उपाध्याय की हत्या के बाद अटल जनसंघ के केंद्र में आ गए और आडवाणी उनके नंबर टू की हैसियत में. 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनने के बाद भी सत्ता का यही क्रम बना रहा.1989 में आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या रथयात्रा के बाद ही बीजेपी बुलंदियों पर पहुंचनी शुरू हुई. 1984 के चुनाव में बीजेपी के पास लोकसभा में दो सीटें थीं, मगर 1989 में ये बढ़कर 88 हो गईं. उसके बाद 1991 में बीजेपी ने यूपी, एमपी, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाई.

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1995 में बतौर अध्यक्ष आडवाणी ने ही बीजेपी के पीएम प्रत्य़ाशी के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी के नाम का ऐलान किया था. वाजपेयी के सत्ता में रहने के दौरान ही आडवाणी हमेशा गृह मंत्री रहे. 2002 में उन्हें उपप्रधानमंत्री बनाया गया.

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