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प्लान मोदी पर आडवाणी का वीटो, रोकी येदियुरप्पा की बीजेपी में वापसी

2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा सांसद देने वाले कर्नाटक के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा घर वापसी के लिए तैयार हैं. इसके लिए मोदी ने अपने लोग तैनात किए थे. मगर इससे पहले की इस ऑपरेशन को अंजाम दिया जाता, पार्टी के बुजुर्ग लालकृष्ण आडवाणी ने वीटो कर दिया. इससे मोदी खेमा नाराज है और आडवाणी खेमा करप्शन फ्री पार्टी की दुहाई दे रहा है.

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Yeddyurappa
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2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा सांसद देने वाले कर्नाटक के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा घर वापसी के लिए तैयार हैं. इसके लिए मोदी ने अपने लोग तैनात किए थे. मगर इससे पहले की इस ऑपरेशन को अंजाम दिया जाता, पार्टी के बुजुर्ग लालकृष्ण आडवाणी ने वीटो कर दिया. इससे मोदी खेमा नाराज है और आडवाणी खेमा करप्शन फ्री पार्टी की दुहाई दे रहा है.

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हमारे सहयोगी चैनल हेडलाइंस टुडे के मुताबिक मोदी गुट यह तर्क देकर येदियुरप्पा की वापसी की हिमायत कर रहा था कि इससे उनकी पार्टी केजेपी के 10 फीसदी वोट भी बीजेपी के पास लौट आएंगे. अगर ऐसा होता है तो 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी एक बार फिर मजबूत स्थित में हो जाएगी. गौरतलब है कि 2009 के चुनाव में बीजेपी को राज्य की 28 में से 18 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. यह संख्या विधानसभा चुनावों से पहले घटकर 16 रह गई क्योंकि दो सांसद येदियुरप्पा के साथ चले गए. अगर विधानसभा चुनावों को पैमाना मानें तो बीजेपी के लिए यहां दहाई के अंक में जाना भी सपने जैसा होगा. उम्मीद बस एक ही है कि येदियुरप्पा पार्टी में लौट आएं, ताकि वोटों का बंटवारा रोक कांग्रेस के खिलाफ चुनौती पेश की जा सके.

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इस गणित को ध्यान में रखकर मोदी ने कर्नाटक के प्रभारी पार्टी महासचिव थावर चंद गहलोत को इस ऑपरेशन के लिए तैनात किया. उनके लिए एक प्लस प्वाइंट यह भी था कि येदियुरप्पा समर्थक अनंत कुमार और उनके गॉड फादर आडवाणी से नाराज थे, बीजेपी या मोदी से नहीं. बहरहाल, गहलोत येदियुरप्पा को मनाने में सफल हो गए. गौरतलब है कि अब तक येदियुरप्पा की पार्टी के नेता यही कह रहे थे कि वापसी का सवाल नहीं, चाहें तो सीटों पर समझौता कर सकते हैं.

मगर जब सब क्लियर हो गया, तो आडवाणी सामने आ गए. उन्होंने पार्टी नेताओं को साफ कर दिया कि करप्शन के मुद्दे पर समझौता नहीं होगा. चाहे पार्टी को सीटों का नुकसान झेलना पड़े. आडवाणी कह रहे हैं कि अगर येदियुरप्पा को वापस ले लिया तो कांग्रेस को करप्शन के मुद्दे पर कैसे घेरेंगे. आडवाणी कह रहे हैं कि पार्टी को कर्नाटक में नए चेहरों के दम पर संगठन खड़ा करना चाहिए.

सूत्रों के मुताबिक इस मसले पर आडवाणी भले ही अड़ रहे हों, मगर मोदी संघ के आशीर्वाद से आगे बढ़ जाएंगे और येदियुरप्पा की यह कहकर वापसी करा दी जाएगी कि अभी कोर्ट ने उन्हें अपराधी सिद्ध नहीं किया है.

कभी रैली तो कभी जोशी पर टकराए

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मोदी और आडवाणी के बीच पहली खुली आम टकराहट संजय जोशी के मुद्दे पर नजर आई थी. ये पिछले साल की बात है, जब मुंबई में पार्टी का अधिवेशन हो रहा था. गडकरी और संघ इस तैयारी में थे कि उनकी अध्यक्षता को एक और विस्तार मिल जाए. नरेंद्र मोदी ने नखरे दिखाए और कहा कि जब तक संजय जोशी को पार्टी में इतना बड़ा प्लेटफॉर्म मिलता रहेगा, वह नहीं आएंगे. आनन फानन में डैमेज कंट्रोल हुआ. आडवाणी को किनारे कर दिया गया और जोशी को पार्टी के पदाधिकारी के पद से मुक्त कर दिया गया. संजय आडवाणी के आदमी थे और संघ की नर्सरी से निकले थे. जब मोदी पौध थे, तब जोशी पेड़ बन चुके थे. ये नब्बे के दशक के गुजरात संगठन की अदावत थी. कहा तो यहां तक जाता है कि संजय जोशी का पॉलिटिकल करियर जिस सेक्स सीडी के जरिए निपटाया गया, उसमें भी बीजेपी के नेताओं का ही हाथ था.

बहरहाल, यहां चर्चा है आडवाणी और मोदी की अदावत की. दोनों ने फिर तलवारें खींचीं आडवाणी की जन स्वाभिमान यात्रा के गुजरात में रूट को लेकर. आडवाणी को लग रहा था कि उनके भी गृहराज्य गुजरात में जिस तरह का स्वागत और उत्साह दिखना चाहिए था, वैसा नहीं हुआ, क्योंकि मोदी ने पार्टी की चूलें नहीं कसीं. दोनों की पिछली कलह तो दुनिया ने देखी. गोवा में मोदी के नेतृत्व पर मुहर लगी, तो आडवाणी कोप भवन में बैठ गए. इस्तीफा देने का हठ योग भी कर लिया. मगर अब लगता है कि पार्टी उनके तानों और नखरों से आगे बढ़ने को तैयार है. क्योंकि ऐसा नहीं किया गया तो मोदी प्लान में पलीता लग जाएगा.

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उसी प्लान का हिस्सा है येदियुरप्पा की वापसी, जिन्हें लोकायुक्त की रिपोर्ट के बाद जुलाई 2011 में मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था. उन पर अवैध खनन माफिया को संरक्षण देने के आरोप लगे थे. दिसंबर 2012 में पार्टी पर अनदेखी का आरोप लगा येदियुरप्पा अलग हो गए. फिर उन्होंने कर्नाटक जनता पक्ष यानी केजेपी का गठन किया. उसके बाद राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी बुरी तरह हारी. केजेपी को सिर्फ 6 सीटें मिलीं, मगर इसका वोट शेयर 10 फीसदी था. इसी पर बीजेपी की नजर है.

 

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