आज लोहड़ी है और इसका जोश पूरे देश में देखा जा रहा है. लोहड़ी का जश्न देश के अलग-अलग हिस्सों में बुधवार से ही शुरू हो गया. दिल्ली के जगतपुरी में लोगों ने नाच-गाकर इस त्योहार का आनंद लिया. उधर, जम्मू-कश्मीर के आरएस पुरा इलाके में सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने एक दिन पहले ही सरहद पर स्थानीय लोगों के साथ नाच-गाकर लोहड़ी का त्यौहार मनाया.
उत्तर भारत में धूमधाम के साथ मनाया जाने वाला पर्व लोहड़ी न केवल फसल पकने और अच्छी खेती का प्रतीक है बल्कि यह जीवन के प्रति उल्लास को दर्शाते हुए सामाजिक जुड़ाव को मजबूत भी करता है. लोहड़ी के बारे में कहा जाता है कि यह पंजाब और हरियाणा का पर्व है क्योंकि इन दोनों राज्यों में इस पर्व की खास धूम होती है.
उम्र के 84वें दशक में पहुंच चुकी दर्शन कौर बताती हैं ‘इसका किसी एक जाति या वर्ग से संबंध नहीं है. हमारे पंजाब में तो हर वर्ग के लोग शाम को एकत्र होते हैं और लोहड़ी मनाते हैं. तब सामाजिक स्तर भी नहीं देखा जाता.’ {mospagebreak}
वह कहती हैं ‘इसे कृषि और उत्पादन का पर्व माना जा सकता है क्योंकि जब लोहड़ी जलाई जाती है तो उसकी पूजा गेहूं की नयी फसल की बालों से की जाती है. हम इस पर्व को अच्छी खेती और फसल पकने का प्रतीक मानते हैं. लोहड़ी आई यानी फसल पकने लगी और फिर खेतों की रखवाली शुरू हो जाती है. बैसाखी तक पकी फसल काटने का समय आ जाता है.’ शायद यही वजह है कि कृषि प्रधान राज्य पंजाब में इसका खास महत्व है.
हर साल अपने घर में लोहड़ी मनाने वाले वायुसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी एस के अवलाश बताते हैं ‘इस दिन का इंतजार बेसब्री से रहता है. लोग शाम को एक जगह एकत्र होते हैं. पूजा कर लोहड़ी जलाई जाती है और इसके आसपास सात चक्कर लगाते समय आग में तिल डालते हुए, ईश्वर से धनधान्य भरपूर होने का आशीर्वाद मांगा जाता है.
ऐसा माना जाता है कि जिसके घर पर भी खुशियों का मौका आया, चाहे विवाह के रूप में हो या संतान के जन्म के रूप में, लोहड़ी उसके घर जलाई जाएगी और लोग वहीं एकत्र होंगे.’ ढोलक की थाप पर लोकगीतों पर गिद्दा करती महिलाएं जहां लोहड़ी को अनोखा रंग दे देती हैं वहीं ढोल बजाते हुए भांगड़ा करते पुरुष इस पर्व में समृद्ध संस्कृति की झलक दिखाते हैं. ठंड के दिनों में आग के आसपास घूम घूम कर नृत्य करते समय हाथों में रखे तिल आग में डाले जाते हैं. अवलाश कहते हैं, ‘लोगों के घर जा कर लोहड़ी जलाने के लिए लकड़ियां मांगी जाती हैं और दुल्ला भट्टी के गीत गाए जाते हैं. {mospagebreak}
कहते हैं कि महराजा अकबर के शासन काल में दुल्ला भट्टी एक लुटेरा था लेकिन वह हिंदू लड़कियों को गुलाम के तौर पर बेचे जाने का विरोधी था. उन्हें बचा कर वह उनकी हिंदू लड़कों से शादी करा देता था. उसे लोग पसंद करते थे. लोहड़ी गीतों में उसके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है.’
उन्होंने बताया ‘कुछ लोग मानते हैं कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है. इसीलिए इसे लोई भी कहा जाता है.’ लोग यह भी मानते हैं कि लोहड़ी ठंड की विदाई का प्रतीक है. बीते दिनों की यादों को खंगालते हुए दर्शन कौर कहती हैं ‘लोहड़ी अगले दिन सुबह तक जलती है. देर रात तक नृत्य करने के बाद जब लोग थक जाते हैं, तब भी उनमें उत्साह बाकी रहता है और वह सोते नहीं. महिलाएं लोहड़ी की आंच में गुड़ और आटे के ‘मन’ पकाती हैं जिसे बड़े चाव से लोग खाते हैं. इस रात विशेष भोज होता है जिसमें सरसों का साग, माह की दाल, तंदूरी रोटी और मक्की की रोटी बनती है.’
बहरहाल, उन्हें यह भी शिकायत है कि अब लोग केवल रस्म निभाते हैं और छोटी सी लोहड़ी जला कर टीवी देखने के लिए घरों के अंदर चले जाते हैं. वह कहती हैं ‘अब तो कई घरों में आंगन ही नहीं होते, लोहड़ी कहां जलाएंगे.’