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एंटी रेप बिल को लोकसभा से मिली मंजूरी

आखिरकार आज संसद में एंटी रेप लॉ बिल पेश हो गया है. गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने बिल पेश करते हुए दिल्ली में चलती बस में गैंग रेप की शिकार लड़की का जिक्र किया और सांसदों से अपील की कि बिल को पास कर बहादुर लड़की को श्रद्धांजलि दें.

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लोकसभा
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आखिरकार आज संसद में एंटी रेप लॉ बिल पेश हो गया है. गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने बिल पेश करते हुए दिल्ली में चलती बस में गैंग रेप की शिकार लड़की का जिक्र किया और सांसदों से अपील की कि बिल को पास कर बहादुर लड़की को श्रद्धांजलि दें.

शिंदे ने महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने के लिए बिल में किए गए प्रावधानों का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि रेप की परिभाषा को और व्यापक किया गया. पहली बार उन चीजों का भी उल्लेख किया गया है जो अब तक कानून में शामिल नहीं था.

इसके बाद यह बिल राज्यसभा में पेश किया जाएगा, जहां से पारित होने के बाद यह कानून बन जाएगा.

केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने मंगलवार को महिला सुरक्षा बिल लोकसभा में पेश किया जिसे शाम होते होते लोकसभा ने पारित कर दिया.

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विधेयक में सहमति के साथ यौन संबंध बनाने के लिए न्यूनतम उम्र 18 वर्ष रखी गई है. इसके लिए केंद्र सरकार पर भारी राजनीतिक दबाव था. कई दल सेक्स की उम्र 16 किए जाने के खिलाफ थे.

सोमवार को सभी दलों की बैठक में मतभेद को देखते हुए सरकार सहमति से सेक्स की उम्र 16 की जगह 18 करने पर राजी हो गई थी. सर्वदलीय बैठक में शामिल हुई पार्टियां इस फैसले के लिए वाहवाही लूटने की कोशिश में लगी हैं.

इसके अलावा पीछा करना और ताक-झांक को जमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है. यानी कि इन मामलों में पुलिस थाने से ही जमानत मिल जाएगी.

सहमति से सेक्स की सीमा पर सरकार का रुख नरम पड़ा है. सभी दलों की बैठक में सरकार उम्र सीमा 18 करने पर राजी हो गई है लेकिन उसमें कुछ शर्तें जोड़ दी हैं.

अगर लड़की 16 की हो और लड़का भी 16 से ऊपर लेकिन 18 से नीचे का हो तो ऐसे में पहले ऑफेंस में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और सुधरने का मौका दिया जाएगा. दूसरे ऑफेंस में जुवेनाइल जस्टिस के तहत मामला चलेगा. अगर लड़का 18 से ऊपर हुआ तो अपराध माना जाएगा, लेकिन घूरने और स्टॉकिंग के मामले में पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाएगी.

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विरोध के बाद कैबिनेट ने जो संशोधन किए हैं उसके मुताबिक अब निजी पलों में ताकझांक को गैरजमानती से जमानती अपराध बनाया गया है. यानी आरोपी को पुलिस के पास से जमानत मिल सकती है. पहले गैरजमानती होने का मतलब था कि गिरफ्तारी तय थी और कोर्ट में पेश होने के बाद ही आरोपी को जमानत मिलती. इसी तरह से पीछा करने को पहली बार जमानती और फिर गैरजमानती अपराध बनाया गया है.

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