आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल अब मुक्त हो चुके हैं और अब एक बड़ी लड़ाई में कूदने को तैयार हैं, उन्होंने अपने कुछ पत्ते छुपा रखे हैं जो शायद वह सही समय पर खोलना चाहेंगे. वे दो दिग्गज राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी की नींद उड़ा देने का इरादा रखते हैं. वे आक्रामक अंदाज में सच्चाई के एक पुरोधा की तरह शंखनाद कर रहे हैं. लेकिन अब तक के उनके व्यवहार और काम करने की शैली से ऐसा कुछ नहीं लगता कि जो चमत्कार उन्होंने विधानसभा चुनाव में कर दिखाया वह लोकसभा के इस महत्वपूर्ण चुनाव में भी कर सकेंगे.
उन्होंने सरकार बनाते समय जो उम्मीदें जगाईं वे सभी काफूर हो चुकी हैं. सस्ती बिजली और पानी दिलाने का उनका वादा अधूरा रहा और भ्रष्टाचार मिटाने की बात तो अभी शुरू हुई थीं तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया. मुद्दे उठाना और उन्हें बीच में ही छोड़ देना केजरीवाल की आदत रही है. उन्होंने दिल्ली वालों को जो वादे किए उससे शायद मुंबई के लोग तो प्रभावित दिखते हैं लेकिन उसके आगे उनके प्रशंसकों की तादाद बहुत ही कम है. ऐसे में उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में क्या कर पाएगी, यह अभी कहना जल्दबाजी होगी. उनके पास न तो पूरे देश में कार्यकर्ता हैं और न ही उतना बड़ा चिंतन. ऐसे में वह अपना भ्रष्टाचार विरोधी चोला तो पहने रहेंगे और उससे ही चुनाव में बाजी मारने की कोशिश करेंगे. लेकिन हाल में ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल ने उनके दावों को खोखला करार देकर उन पर काफी बड़ी चोट की है जिससे उबरने में उन्हें काफी वक्त लगेगा जो उनके पास नहीं है.
केजरीवाल नरेंद्र मोदी पर खुलकर पहले तो हमला नहीं कर रहे थे लेकिन बाद में वे उन पर भी वार करने लगे और उनके खिलाफ भी मुहिम में जुट गए. लेकिन मोदी पर इस तरह का सीधा हमला बेकार है क्योंकि उन पर बेशक अन्य आरोप लगे हैं परंतु वे ईमानदारी के मामले में नीतीश कुमार, ममता बनर्जी जैसे नेताओं की ही तरह हैं. उन पर ऐसे उंगली उठाकर केजरीवाल ने एक गलत नंबर डायल किया है. वह मोदी की लोकप्रियता या जिसे वे मार्केटिंग कहते हैं, से घबराए हुए हैं. उनकी घबराहट साफ दिख रही है और इसलिए ‘उसकी कमीज मेरी कमीज से सफेद कैसे’ के तर्ज पर वो मोदी पर भी कीचड़ उछाल रहे हैं.
लेकिन मोदी इस जंग में अगली कतार के नायकों में जा बैठे हैं और एक कुशल सेनानायक की तरह अपनी चालें चल रहे हैं. वह जन समर्थन को और बढ़ाने के लिए तेजी से प्रचार करते जा रहे हैं जिसमें कांग्रेस के महाबली राहुल गांधी भी पिछड़ते दिख रहे हैं. राहुल गांधी बेशक अच्छी भावनाओं से लबरेज होकर भ्रष्टाचार दूर करने के वादे के साथ मैदान में उतरे हैं लेकिन उनके पास कहने को कुछ नहीं है. उनकी पार्टी ने उन्हें कुछ ऐसा नहीं दिया है जिनके आधार पर वह इस जंग को जीत लेने का दंभ भरें. वे पूरी तरह से बैकफुट पर दिखते हैं.
150 साल से भी ज्यादा पुरानी पार्टी का पुर्जा-पुर्जा इस समय हिला हुआ दिख रहा है. राहुल गांधी नरेन्द्र मोदी की तरह राजनीति के चतुर और चपल खिलाड़ी नहीं हैं. वे सीधे तौर पर अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं लेकिन अब उसके लिए वक्त बहुत कम बचा है. सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी पार्टी ने ही उन्हें नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. 2जी घोटाला, कोलगेट वगैरह की काली छाया से पार्टी को निकालने में वे कितना सफल होंगे, ये तो समय ही बताएगा. मोदी उनकी कमजो़रियों को पहचान कर एक बेहतर भारत का सपना दिखा रहे हैं और उनके सामने अभी कोई नहीं दिख रहा है.
बहरहाल अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी ही नहीं गलत भी होगा. अभी तो सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि मोदी एक सधे हुए घुड़सवार की तरह सरपट भागे जा रहे हैं और उन्हें चुनौती देने वाले अभी पीछे हैं. वक्त ही फैसला करेगा कि कौन आगे रहेगा और कौन पिछड़ जाएगा.