जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने के मुद्दे पर लोकसभा में शुक्रवार को चर्चा के दौरान उस समय पूरे सदन में हंसी की लहर दौड़ गई जब अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा की कि क्या आप राजनाथ सिंह को एक्सपर्ट ऑफ मैरिज मानते हैं? हुआ यूं कि जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने संबंधी प्रस्ताव पर सदन में चर्चा चल रही थी, इस दौरान कांग्रेस नेता शशि थरूर ने राज्य में बीजेपी और पीडीपी के गठबंधन को अस्वाभाविक विवाह (अनैचुरल मैरिज) बताया था.
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने जब चर्चा में हस्तक्षेप किया तो उन्होंने थरूर की इस टिप्पणी का जिक्र करते हुए कहा कि वह न तो स्वाभाविक विवाह और न ही अस्वाभाविक को परिभाषित कर सकते हैं. राज्य में बीजेपी और पीडीपी के मिलकर सरकार बनाने के संदर्भ में थरूर के बयान पर उन्होंने कहा कि आप इसे अस्वाभाविक विवाह कहिए या क्या कुछ भी कहिए. जिसे नैचुरल मैरिज कहा जाता है, वह भी कब टूट जाए, उसका पता नहीं. उनके यह कहने के बाद थरूर सहित कुछ सदस्यों ने विवाह को लेकर टीका टिप्पणी शुरू कर दी. इस पर अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सदस्यों से कहा कि क्या आप उन्हें एक्सपर्ट ऑफ मैरिज मानते हैं? महाजन की इस छोटी सी टिप्पणी पर सदन में हंसी की लहर दौड़ गई.
राजनाथ ने लगाई फटकार
इस टिप्पणी के बाद बीजेपी के सांसदों की हंसी पर नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि शर्म आनी चाहिए. इसका भी बीजेपी के सदस्यों ने विरोध किया और दोनों ओर से शोर सुनाई देने लगा. इस पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अपनी ही पार्टी के सदस्यों को टोकते हुए कहा कि वह (फारूक अब्दुल्ला) सदन के वरिष्ठ सदस्य हैं, अगर उन्होंने कुछ कहा है, तब इस पर प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं है. इस पर फारूक अब्दुल्ला ने धन्यवाद कहा.
क्यों लगाया राष्ट्रपति शासन
लोकसभा में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के बारे में हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि इस विषय पर मैं भी चर्चा चाहता था कि क्योंकि यह चर्चा लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है. उन्होंने कहा कि राज्यपाल शासन लागू करने से पहले किसी भी पार्टी ने सरकार बना पाने में अपनी असमर्थता जाहिर की थी और तब केंद्र को राज्यपाल शासन की घोषणा करनी पड़ी, लेकिन तब भी विधानसभा भंग नहीं की गई, इन हालात में राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए अपनी रिपोर्ट भेजी और राष्ट्रपति शासन लगाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था.