सरकार और गांधीवादी अन्ना हज़ारे पक्ष के बीच गतिरोध गहराने और पिछले दिनों दोनों पक्षों की ओर से हुई तीखी बयानबाजी के बाद लोकपाल मसौदा संयुक्त समिति की अगली बैठक बुधवार को होगी. हज़ारे पक्ष ने साफ कर दिया है कि गंभीर मतभेदों के बावजूद वह समिति की बैठक में शामिल होगा.
कालेधन के मुद्दे पर बाबा रामदेव के अनशन के दौरान रामलीला मैदान पर हुई पुलिस कार्रवाई और भ्रष्टाचार से निपटने के प्रति सरकार के अब तक के रुख के विरोध में हज़ारे पक्ष ने लोकपाल मसौदा समिति की छह जून को हुई पिछली बैठक का बहिष्कार किया था.
इसके बाद समिति में केंद्र की ओर से शामिल मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा था कि हज़ारे पक्ष शामिल हो या नहीं हो, सरकार 30 जून तक विधेयक का मसौदा तैयार कर लेगी.
हालांकि, हज़ारे पक्ष ने सोमवार को संवाददाता सम्मेलन बुलाकर यह साफ कर दिया कि वे समिति से अलग नहीं होंगे और इसकी 15 जून को होने वाली अगली बैठक में भाग लेंगे.
समिति में शामिल आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने कहा, ‘हम समिति से बाहर नहीं होना चाहते. हम 30 जून तक इंतजार करना चाहते हैं. समिति में बने रहकर हम सरकार के रुख में बदलाव नहीं आने की स्थिति में कम से कम अहम मुद्दों पर अपना ‘विरोध नोट’ तो दे ही सकते हैं.’ हज़ारे पक्ष ने स्वीकार किया कि बीते एक पखवाड़े के दौरान हुए घटनाक्रमों के चलते उनके और सरकार के बीच आपसी विश्वास में कमी आई है.
केजरीवाल ने कहा, ‘हम स्वीकार करते हैं कि दोनों पक्षों के बीच आपसी विश्वास की कमी है. लेकिन इसके बावजूद हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है. हमारी तरफ से 30 जून से पहले मसौदा तैयार करने की पूरी कोशिश होगी.’ पिछली बैठक का बहिष्कार करने के बाद हज़ारे ने आठ जून को राजघाट पर एक दिन का अनशन कर घोषणा की कि अगर लोकपाल विधेयक को संसद के मानसून सत्र में पारित नहीं किया गया तो वह फिर आंदोलन करेंगे.
बारह जून को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे पत्र में भी उन्होंने दोहराया कि अगर 15 अगस्त तक सख्त लोकपाल कानून नहीं बना तो वह 16 अगस्त से फिर जंतर मंतर पर अनशन करेंगे और इस बार उनका आंदोलन पहले से भी बड़ा होगा.
हालांकि, लोकपाल मसौदा समिति के अध्यक्ष और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा है कि लोकपाल विधेयक को संसद के मानसून सत्र में पेश किया जायेगा, लेकिन सरकार यह नहीं बता सकती कि वह कब तक विधेयक को पारित करा लेगी.
हज़ारे पक्ष और सरकार के बीच प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका और संसद के भीतर सांसदों के भ्रष्ट आचरण को प्रस्तावित लोकपाल की जांच के दायरे में लाने के मुद्दे पर गतिरोध है. हजारे पक्ष ने कल प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखा और उनसे इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट करने का अनुरोध किया.
प्रशांत भूषण ने कहा, ‘अहम मुद्दों पर सरकार और हमारे बीच अब तक आम सहमति नहीं बन पायी है. हमें उम्मीद है कि सरकार जनमानस को देखते हुए अपना रुख बदलेगी. यही कारण है कि हम समिति से अलग नहीं हो रहे हैं.’ इस बीच, कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने हज़ारे पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि लोकतंत्र को सबसे बड़ा खतरा गैर-निर्वाचित तानाशाहों से है.