समाजसेवी अन्ना हजारे की लाख धमकियों के बावजूद सरकार ने लोकपाल के नए ड्राफ्ट को बिना सीबीआई के कैबिनेट की बैठक में पास कर दिया है.
सूत्रों से मिली खबर के मुताबिक सरकारी लोकपाल बिल में सीबीआई को पूरी तरह लोकपाल के दायरे से बाहर रखा गया है. सीबीआई निदेशक के चयन के लिए एक समिति बनाने का प्रावधान है. इस चयन समिति में प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और सुप्रीम कोर्ट के मुख्यन्यायाधीश शामिल होंगे.
लोकापाल के पास जांच के लिए कोई अलग शाखा नहीं होगी. लोकपाल के पास आए भ्रष्टाचार मामलों की जांच का अधिकार सिर्फ सीबीआई के पास ही होगा. लोकपाल को शुरुआती जांच की रिपोर्ट 90 दिनों के भीतर सौंपनी होगी.
लोकपाल के लिए अलग अदालत भी बनेगी जो लोकपाल के दायरे में नहीं होगी. प्रधानमंत्री को कुछ सेफगार्ड्स के साथ लोकपाल के दायरे में रखा गया है. पीएम के खिलाफ कार्रवाई के लिए लोकपाल के तीन चौथाई सदस्यों की सहमति चाहिए. शर्त ये भी है कि पीएम के खिलाफ आरोपों की जांच सात साल के भीतर ही होगी.
ग्रुप सी और डी के कर्मचारियों को भी लोकपाल के दायरे में नहीं रखा गया है. बिल में नचली नौकरशाही को सीवीसी के अधीन करने की सिफारिश की गई है. सरकारी या विदेशी मदद पाने वाले एनजीओ भी लोकपाल के दायरे में होंगे. सरकार के बिल में सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा गया है.
लोकपाल में 9 सदस्य से ज्यादा नहीं होंगे. इनमें कम से कम 50 फीसदी आरक्षण का प्रावधान होगा. लोकपाल के चयन के लिए एक समिति बनेगी जिसमें प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रपति के चुने हुए मशहूर शख्सियत होंगे.
लोकपाल को हटाने का हक सिर्फ सुप्रीम कोर्ट को होगा. हालांकि सदन के कम से कम सौ सांसद चाहे तो सुप्रीम कोर्ट को लोकपाल को हटाने की सिफारिश कर सकते हैं. बताया जा रहा है कि गुरुवार को ये बिल संसद में पेश हो सकता है. प्रधानमंत्री ने कैबिनेट में शामिल मंत्रियों से कहा है कि वो इस बिल के मुद्दों की बाहर चर्चा ना करें.
हालांकि अन्ना हजारे ने आज शाम को ही एक पत्रकार वार्ता करके साफ कर दिया है कि अगर सरकार सीबीआई को लोकपाल से बाहर रखती है तो वह 27 दिसंबर से 29 तक मुंबई के आजाद मैदान में अनशन करेंगे. अन्ना ने कहा कि अगर सरकार पर उनके अनशन को असर नहीं पड़ता है तो वह 30 दिसंबर से 1 जनवरी तक जेल भरो आंदोलन का आह्वान करेंगे.