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लोकपाल बिल पास कराने का वादा नहीं: सिब्‍बल

भ्रष्टाचार से लड़ने वाला लोकपाल क्या कभी बन पाएगा. अगर लोकपाल जैसी संस्था तैयार हो भी जाती है, तो इसकी ताकत कितनी होगी. ये सवाल इसलिए मौजूं हो गया है क्योंकि सरकार ने इस मुद्दे पर बड़ा गोलमोल जवाब दिया है.

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भ्रष्टाचार से लड़ने वाला लोकपाल क्या कभी बन पाएगा. अगर लोकपाल जैसी संस्था तैयार हो भी जाती है, तो इसकी ताकत कितनी होगी. ये सवाल इसलिए मौजूं हो गया है क्योंकि सरकार ने इस मुद्दे पर बड़ा गोलमोल जवाब दिया है.

सर्वदलीय बैठक के बारे में मीडिया से कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार ने संसद के मानसून सत्र में लोकपाल विधेयक लाने का वायदा किया है, लेकिन इसे पारित करने की समय सीमा के बारे में उसकी कोई प्रतिबद्धता नहीं है.

सिब्बल ने कहा, ‘हम संसद के मानसून सत्र में लोकपाल विधेयक पेश किए जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हमने यह कभी नहीं कहा कि यह मानसून सत्र में ही पारित हो जाएगा.’ उन्होंने कहा कि सर्वदलीय बैठक में हिस्सा लेने वाले दो दलों ने सुझाव दिया है कि इस विधेयक को शीतकालीन सत्र में पारित किया जा सकता है.

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वहीं, गृह मंत्री पी चिदंबरम ने इस बारे में संतोष व्यक्त करते हुए उम्मीद जताई कि इस मुद्दे पर आम राय बन जाएगी और सरकार संसद के मानसून सत्र में लोकपाल विधेयक का मसौदा पेश कर सकेगी. उन्होंने कहा, ‘कल की सर्वदलीय बैठक के नतीजों से हम खुश हैं. हमें विश्वास है कि हम संसद के मानसून सत्र में विधेयक पेश करने और जितना जल्दी संभव हो उसे पारित कराने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सफल होंगे.’

गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री की तरफ से कल बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में संसदीय प्रक्रिया की श्रेष्ठता और विधेयकों को बनाने तथा पारित कराने में राजनीतिक दलों की भूमिका पर जोर दिया गया. उनकी इस टिप्पणी से सरकार को राहत मिलने का बोध हो रहा है, जो अभी तक भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विपक्ष से प्रहारों से घिरी हुई लोकपाल विधेयक के मुद्दे पर गांधीवादी अन्ना हज़ारे पक्ष से अकेले जूझ रही थी.

चिदंबरम ने कहा, ‘हम संसद के मानसून सत्र में विधेयक पेश करेंगे. उस पर चर्चा होगी. प्रयास होगा कि जितनी जल्दी संभव हो, विधेयक पारित हो जाए, लेकिन यह संसद के सदस्यों और स्थापित प्रक्रियाओं को अपनाने की उनकी इच्छा पर निर्भर करेगा.’

उल्लेखनीय है कि सर्वदलीय बैठक के बाद विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा था कि विधेयक को मानसून सत्र में पेश करने के बाद संसद की स्थायी समिति में भेज दिया जाए. स्थायी समिति सभी राजनीतिक दलों, राज्य सरकारों और समाज के सदस्यों से उनके विचार जानने के बाद संसद के शीतकालीन सत्र में अपनी रिपोर्ट पेश करे और उसकी सिफारिशों को समाहित करते हुए विधेयक को पारित किया जाए.

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चिदंबरम और सिब्बल दोनों ने कहा कि भाजपा सहित कुछ दलों ने विधेयक के प्रावधानों और प्रधानमंत्री तथा न्यायपालिका को इसके दायरे में लाने पर अभी अपने विचार व्यक्त नहीं किए हैं और सरकार को इसपर कोई आपत्ति नहीं है. गृह मंत्री ने कहा कि अधिकतर दलों ने कहा है कि वे संसद में विधेयक पेश किए जाने पर अपने विचार रखेंगे और ‘उनकी यह बात वाजिब है.’ उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों के रूख से लगता है कि उनमें से अधिकतर प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल विधेयक के दायरे में लाने के पक्ष में नहीं हैं.

दोनों मंत्री हालांकि, ‘उचित’ लोकपाल विधेयक नहीं लाए जाने की स्थिति में 16 अगस्त से फिर से अनशन करने की गांधीवादी अन्ना हज़ारे की चेतावनी के बारे में सीधे टिप्पणी करने से बचते नजर आए. चिदंबरम ने कहा, ‘मैं नहीं समझता कि हमें यह मान कर चलने की जरूरत है कि अनशन होगा और वह भी 16 अगस्त से शुरू होगा. मुझे पूरा भरोसा है कि सरकार की ओर से संसद में पेश किए जाने वाले लोकपाल विधेयक से अधिकांश लोग संतुष्ट होंगे.’ सिब्बल ने भी विश्वास जताया कि सरकार की ओर से रखे जाने विधेयक को लोग स्वीकार करेंगे.

विधेयक का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया में समाज के सदस्यों को शामिल किए जाने की कुछ राजनीतिक दलों की आलोचना के संबंध में चिदंबरम ने कहा, उन परिस्थितियों में यह महसूस किया गया था कि हज़ारे पक्ष को साथ लेना बेहतर विकल्प होगा. प्रधानमंत्री को लोकपाल विधेयक के दायरे में लाए जाने की द्रमुक की वकालत किए जाने के संबंध में पूछे जाने पर सिब्बल ने पलट कर कहा कि राजग के घटक दल अकाली दल ने इसका विरोध किया है. उन्होंने कहा, ‘ये सब चर्चा के विषय हैं.’

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