गंभीर मतभेदों और तीखी बयानबाजी के दौर के बाद सरकार और गांधीवादी अन्ना हज़ारे पक्ष के बीच लोकपाल विधेयक मसौदा समिति की बैठक ‘सौहार्दपूर्ण’ रही.
हालांकि, सरकार ने जहां बातचीत में बड़ी प्रगति होने का दावा किया, वहीं हज़ारे पक्ष ने कहा कि मतभेद वाले मुद्दों पर अब तक आम सहमति नहीं बन पायी है.
बैठक का ‘सौहार्दपूर्ण’ माहौल में होना इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछली बैठक में गंभीर मतभेद उभरने के बाद दोनों पक्षों के बीच बातचीत लगभग टूटने की कगार पर पहुंच चुकी थी.
बहरहाल, सोमवार को करीब तीन घंटे चली बैठक के बाद मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हमारे बीच बिना किसी कटुता के विस्तृत चर्चा हुई. इस बैठक को हम प्रस्तावित लोकपाल विधेयक की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम मानते हैं. बातचीत में बड़ी प्रगति हुई है. प्रस्तावित मसौदा विधेयक के लगभग 80 से 85 फीसदी प्रावधानों को अंतिम रूप दिया जा चुका है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘कई मुद्दों पर दोनों पक्षों के बीच व्यापक तालमेल है. जिन पर मतभेद हैं, उनका मसौदे में जिक्र किया जायेगा. मसौदा समिति की कल भी बैठक होगी जिसमें दोनों पक्ष मसौदे के अपने-अपने संस्करण एकदूसरे को सौंपेंगे.’’
सिब्बल के दावे के विपरीत हज़ारे पक्ष के अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने कहा, ‘‘जिन मुद्दों पर दोनों पक्षों के बीच पहले मतभेद थे, उन पर अब तक भी कोई सहमति नहीं बन पायी है. प्रस्तावित लोकपाल की चयन प्रक्रिया और उसे हटाने की प्रक्रिया जैसे दो नये मुद्दों पर हमारे सरकार के साथ मतभेद उभरे हैं.’’ हालांकि, दोनों ने कहा कि यह बैठक पूर्व की बैठकों की तुलना में ‘सौहार्दपूर्ण’ रही.
सिब्बल ने कहा, ‘‘असहमति वाले अहम मुद्दों के साथ तैयार होने वाले मसौदे को हम जुलाई में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा बुलायी जाने वाली सर्वदलीय बैठक में रखेंगे. हमने तय किया है कि मतभेदों वाले ऐसे अहम मुद्दों पर राजनीतिक प्रक्रिया के जरिये फैसला किया जाये.’’
उन्होंने कहा कि इसी आधार पर एक मजबूत लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार किया जायेगा, जिसे संसद के मानसून सत्र में पेश करने से पहले मंजूरी के लिये कैबिनेट के पास भेजा जायेगा.
उन्होंने कहा कि हज़ारे पक्ष ने लोकपाल के जिन 40 बुनियादी बिंदुओं को हमें सौंपा था, उन्हें हमने विभिन्न वर्गों में विभाजित किया है और उनमें से अधिकतर पर सहमति बन चुकी है.
हालांकि, केजरीवाल ने कहा कि 40 में से 11 छोटे मुद्दों पर ही सहमति बन पायी है, लेकिन प्रधानमंत्री पद, उच्च न्यायपालिका और संसद के अंदर सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे में लाने जैसे विवादास्पद मुद्दों पर अब भी मतभेद कायम हैं.
इस बैठक में प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने का मुद्दा नहीं उठा. इस बैठक में हज़ारे पक्ष की ओर से कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने भाग नहीं लिया.
केजरीवाल के अनुसार सरकार ने कहा कि लोकपाल की चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, संसद के दोनों सदनों के नेता और विपक्ष के नेता, गृह मंत्री, कैबिनेट सचिव, उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश और उच्च न्यायालय के एक मुख्य न्यायाधीश को रखा जाये.
उन्होंने कहा कि हमने यह प्रस्ताव रखा था कि लोकपाल का चयन उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीश, दो उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक तथा केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की सदस्यता वाली समिति करे.
केजरीवाल ने कहा कि सरकार जिस समिति का सुझाव दे रही है, उसमें राजनीतिक और सरकारी पदों पर आसीन लोगों का प्रभुत्व रहेगा. लोकपाल को हटाने की प्रक्रिया पर भी दोनों पक्षों के बीच मतभेद हैं. आरटीआई कार्यकर्ता ने कहा कि हमने प्रस्ताव रखा था कि लोकपाल के खिलाफ आम नागरिक को भी उच्चतम न्यायालय में शिकायत करने के अधिकार दिये जायें. हालांकि, सरकार ने कहा है कि लोकपाल के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में शिकायत दाखिल करने का अधिकार सिर्फ उसी के पास रहना चाहिये.
उन्होंने कहा कि मंगलवार को होने वाली समिति की अंतिम बैठक में मसौदे के संस्करणों का आदान-प्रदान होने के बाद दोनों पक्ष पत्र व्यवहार के जरिये उस पर टिप्पणियां भेजेंगे.
सरकार द्वारा जुलाई में सर्वदलीय बैठक बुलाये जाने के फैसले पर केजरीवाल ने कहा, ‘‘हम इसके खिलाफ नहीं है. सर्वदलीय बैठक होनी चाहिये. हम भी जल्द ही राजनीतिक दलों से इस मुद्दे पर संवाद साधेंगे.’’
अहम मुद्दों पर मतभेद कायम रहने के बावजूद हज़ारे पक्ष इस चर्चा को ‘सौहार्दपूर्ण’ क्यों करार दे रहा है, इस पर भूषण और केजरीवाल ने कहा कि पूर्व की बैठकों में हमारी दलीलें नहीं सुनी जाती थीं और सरकार सिर्फ अपने फैसले सुनाती थी. इस बैठक में दोनों पक्षों ने बराबरी से अपने मुद्दे रखे और चर्चा ‘सभ्य’ तरीके से हुई.
लोकपाल की ईमानदारी सुनिश्चित कराने के सवालों पर केजरीवाल ने कहा सीवीसी में 236 कर्मचारी हैं, जिनमें से कुछ भ्रष्ट हो सकते हैं. लेकिन दिल्ली मेट्रो के सात हजार कर्मियों में रेलवे से प्रतिनियुक्ति पर आये कर्मी शामिल रहते हैं और सभी विश्व स्तरीय मेट्रो सेवाएं देते हैं.
केजरीवाल ने कहा कि उन्होंने दिल्ली मेट्रो के प्रमुख ई. श्रीधरन से भी बातचीत की थी. उन्होंने कहा कि हमने सरकार को दिल्ली मेट्रो का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां व्यवस्था अच्छी होने के कारण ईमानदारी और उत्कृष्टता है.
जिन मुद्दों पर कायम है विवाद:
अभी लोकपाल के दायरे में न्यायपालिका को रखने पर विवाद बना हुआ है. लोकपाल के दायरे में पीएमओ को रखा जाए या नहीं इस पर चर्चा ही नहीं हुई. वहीं सरकार के सूत्रों से मिली खबर के मुताबिक सरकार सिविल सेवा के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के भी खिलाफ है.
लोकपाल को सीबीआई और सीवीसी से ऊंचा स्थान देने पर भी सहमति नहीं है. सीएजी और चुनाव आयोग के मसले पर भी विवाद कायम है. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जहां सिविल सोसायटी उम्रकैद की सजा की मांग कर रही है, वहीं सरकार दस साल की सजा के हक में है. वैज्ञानिकों को भी शामिल करने को लेकर मतभेद है.