देश की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है तो इसके पीछे सियासी इतिहास है. देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री इसी सूबे ने दिए हैं और सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें भी यहीं हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी ने सूबे की 71 सीटें जीतकर केंद्र में सरकार बनाई थी. 28 साल बाद यह पहला मौका था जबकि किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला था.
यूपी में बीजेपी को चौथे पायदान से पहले नंबर की पार्टी बनाने में जहां एक ओर नरेंद्र मोदी का करिश्मा काम कर रहा था. वहीं, यूपी के तत्कालीन पार्टी प्रभारी अमित शाह की रणनीति भी बेहद कारगर साबित हुई थी. मोदी की तरह अमित शाह का भी गृह राज्य गुजरात है. 2019 के लोकसभा चुनाव में 2014 जैसे नतीजे दोहराने के लिए वैसी ही जिम्मेदारी एक बार फिर गुजरात से ताल्लुक रखने वाले पार्टी नेता गोवर्धन झड़फिया को सौंपी है. उन्हें बुधवार को यूपी के बीजेपी प्रभारी बनाया गया है.
दंगों के दौरान गुजरात के गृहमंत्री थे गोवर्धन झड़फिया
दिलचस्प बात ये है कि गुजरात में नरेंद्र मोदी के सीएम रहते हुए अमित शाह गृहमंत्री थे. जबकि शाह से पहले मोदी सरकार में गुजरात के गृहमंत्री की जिम्मेदारी गोवर्धन झड़फिया ने हाथों में थी. झड़फिया के गृहमंत्री रहने के दौरान ही साल 2002 में गुजराज दंगे हुए थे. 2002 के बाद ही झड़फिया साइड लाइन हो गए और बाद में 2005 उन्होंने पार्टी छोड़ दी. उन्होंने केशुभाई पटेल के साथ मिलकर गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाई, लेकिन उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली.
केशुभाई के साथ बीजेपी से अलग हो गए थे
हालांकि 2013 के विधानसभा चुनाव के बाद केशुभाई और गोवर्धन झड़फिया ने मिलकर जिस गुजरात परिवर्तन पार्टी को बनाया था उसे बीजेपी में मर्ज कर दिया. झड़फिया बीजेपी में वापसी के बाद से संगठन में सक्रिय हैं.
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले गोवर्धन झड़फिया को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाकर बीजेपी ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है. वहीं, सूबे में सपा-बसपा के बीच गठबंधन होता नजर आ रहा है. यही वजह है कि झड़फिया सूबे की कमान बीजेपी ने बहुत सोच समझकर दी है.
एबीवीपी से शुरू किया था सफर
झड़फिया गुजरात के पाटीदार (पटेल) समुदाय से आते हैं और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जरिए उन्होंने अपना सियासी सफर शुरू किया. उन्होंने संजय जोशी जैसे नेताओं के साथ संगठन में काम किया है. इसके अलावा किसान नेता के तौर पर भी अपनी पहचान बनाई थी.
इससे साफ समझा जा सकता है कि झड़फिया यूपी में जातीय समीकरण को साधने के साथ-साथ संगठन को मजबूत करने में अहम रोल अदा कर सकते हैं. झड़फिया जिस समाज से आते हैं वह समाज यूपी में ओबीसी के तहत आता है. यूपी में कुर्मी समाज की आबादी करीब 5 फीसदी है. सपा-बसपा गठबंधन कर उन्हें साधने की कोशिश में जुटा है. इस समीकरण को अपने पक्ष में करने की बड़ी चुनौती झड़फिया के ऊपर होगी.
इस बार होगी अग्निपरीक्षा
2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान हार्दिक पटेल का पाटीदार आंदोलन की काट के लिए बीजेपी ने झड़फिया को जिम्मेदारी सौंपी थी. इसका नतीजा था कि बीजेपी की एक बार सत्ता में वापसी हुई. हालांकि कुछ सीटें जरूर कम हो गई हैं. ऐसे ही यूपी के विधानसभा चुनाव में उन्हें सूबे के किसानों को साधने की जिम्मेदारी सौंपी थी. इसमें वो सफल रहे थे. इसके बाद उनकी अगली अग्निपरीक्षा 2019 के लोकसभा चुनाव में होनी है. अब देखना है कि शाह के दौरान आए नतीजों को वह दोहरा पाएंगे या नहीं?