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'15वीं लोकसभा का एक-तिहाई वक्त बर्बाद'

संसद का मौजूदा सत्र समाप्त होने को है, लेकिन इस दौरान हुए काम पर नजर डाली जाए तो यह बहुत निराशाजनक है. 15वीं लोकसभा का एक-तिहाई से अधिक वक्त हंगामे की भेंट चढ़ चुका है.

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संसद का मौजूदा सत्र समाप्त होने को है, लेकिन इस दौरान हुए काम पर नजर डाली जाए तो यह बहुत निराशाजनक है. 15वीं लोकसभा का एक-तिहाई से अधिक वक्त हंगामे की भेंट चढ़ चुका है.

संसद के समक्ष करीब 100 विधेयक लम्बित हैं, जिनमें से कुछ 20 साल पुराने भी हैं. 15वीं लोकसभा में इन सभी का पारित होना मुश्किल लगता है, क्योंकि इसका कार्यकाल अब सिर्फ दो साल बचा है.

कोयला ब्लॉक आवंटन पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग को लेकर विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पिछले एक सप्ताह से भी अधिक समय से संसद को बंधक बना रखा है.

इस लोकसभा को लगभग तीन साल हो चुके हैं और इस दौरान अब तक इसका एक-तिहाई से अधिक वक्त बर्बाद हो चुका है, जबकि इससे पहले की लोकसभाओं में काम कहीं अधिक हुआ.

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पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार, केवल 16 माह चली नौंवी लोकसभा (1989-91) में दो प्रधानमंत्री बदले- वी. पी. सिंह और चंद्रशेखर, लेकिन इससे संसद के कामकाज पर फर्क नहीं पड़ा, बल्कि निर्धारित समय 654 घंटे से अधिक 754 घंटे इसकी बैठक हुई और इस दौरान 63 विधेयक पारित किए गए.

इसी तरह 11वीं लोकसभा की अवधि भी हालांकि कम रही. इस दौरान तीन प्रधानमंत्री बदले- अटल बिहारी वाजपेयी, देवगौड़ा और आई. के. गुजराल, लेकिन इसमें भी कामकाज प्रभावित नहीं हुआ. निर्धारित समय 750 घंटे के बजाय इसका सत्र करीब 813 घंटे चला और इस दौरान 61 विधेयक पारित किए गए.

12वीं लोकसभा में वाजपेयी दोबारा प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनकी सरकार केवल 13 महीने चल पाई. इसके बावजूद संसद का कामकाज मौजूदा समय की तरह प्रभावित नहीं हुआ. सदन में निर्धारित 528 घंटे के मुकाबले 574 घंटे कामकाज हुआ और 56 विधेयक पारित हुए.

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च से जुड़े एम. आर. माधवन ने कहा कि पिछले कुछ वर्षो में संसद की कार्यवाही बाधित हुई है और इसका कामकाज प्रभावित हुआ है. उन्होंने कहा, ‘वर्ष 1950 और 1960 के दशक में जहां संसद का सत्र साल में 120 से 140 दिन तक हुआ करता था, वहीं अब यह 60 से 70 दिन का होता है.’

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उन्होंने कहा, ‘मौजूदा लोकसभा का अब तक एक-तिहाई समय बर्बाद हो चुका है. यही वजह है कि कई विधेयक लम्बित पड़े हैं और कुछ बिना चर्चा के पारित किए जा रहे हैं.’

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