दुनिया का कायदा यह है कि कोई भी प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले ही उसके लिए सौ फीसदी जमीन की व्यवस्था हो जानी चाहिए. लेकिन भारत में 30 फीसदी जमीन उपलब्ध होने पर भी प्रोजेक्ट शुरू करने की मंजूरी दे दी जाती है. इसकी वजह और नुकसान पर एक नजर डालते हैं-
- तीन वजह होती है जमीन मिलने में देरी की. कीमत कम आंके जाने पर विवाद. इसके लिए राज्य सरकारों पर निर्भरता और ऐसी जमीन न मिलना, जिस पर लोगों की आपत्ति कम से कम हो.
- सरकारें बिना जमीन के जब प्रोजेक्ट को मंजूरी दे देती हैं, तो उस पर काम तो शुरू हो जाता है, लेकिन पूरा लंबे समय तक नहीं होता. नतीजा प्रोजेक्ट की कॉस्ट बढ़ती चली जाती है. इससे सरकारी महकमे और ठेकेदारों की मनमानी और भ्रष्टाचार बढ़ता जाता है.
- मैकेंजी ने कंस्ट्रक्शन कंपनियों का सर्वे कर बताया है कि देश में 70 से 90 फीसदी रोड प्रोजेक्ट जमीन नहीं मिलने के पूरे नहीं हो पा रहे हैं.
- दिल्ली-जयपुर के 225 किमी हाईवे को 2008 में चार से छह लेन का बनाने का काम शुरू हुआ. यह ढाई साल में पूरा होना था, लेकिन अब तक नहीं हो पाया. जमीन विवाद रुकावट बने हुए हैं.
- कोलकाता-सिलिगुड़ी हाईवे भी इसी तरह वर्षों से पूरा नहीं हो पा रहा है.
- 5.0 किमी का ब्रांद्रा-कुर्ला सी-लिंक रोड 2010 में शुरू हुआ. इससे बनने में दस साल लगे, जिसकी वजह से उसकी लागत 660 करोड़ से बढ़कर 1600 करोड़ रुपए हो गई और इसके अलावा 700 करोड़ का ब्याज देना पड़ा सो अलग.
- नेशनल हाईवे अथॉरिटी का कहना है कि उसके 60 हजार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट जमीन न मिलने के कारण अटके हुए हैं.
- रिसर्च फर्म मैकेंजी का आंकलन है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूती देने वाले इन प्रोजेक्ट के समय से पूरा न होने पर भारत की जीडीपी को हर साल 20 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है.
यदि चीन से तुलना करें तो...
- 1318 किमी का बीजिंग-शंघाई हाईस्पीड रेलवे ट्रैक तीन साल में बनकर तैयार हो गया. 2011 में शुरू हुए इस ट्रैक पर 380 किमी की रफ्तार से ट्रेन दौड़ती है.
- दुनिया की सबसे ऊंचे रेलवे 1142 किमी का गोलमुंड-ल्हासा ट्रैक पांच साल में बनकर तैयार हो गया.
- दुनिया का सबसे लंबा 42 किमी का समुद्री ब्रिज जो किंगदाओ से हुआंगडाओ के बीच है, चार साल में बना दिया गया.