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लव जेहाद - ‘प्यार अंधा या धंधा’

कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव के साथ ही उत्तर प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा के उपचुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही हैं, वैसे-वैसे ‘लव जेहाद’ का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. अब आरएसएस के मुखपत्रों ने ‘लव जेहाद’ का मामला खुल कर उछाल दिया है. अब तक मौखिक तौर पर उछल रहा ये विवाद पहली बार मुखपत्र तक पहुंचा है. इसे लेकर राजनीतिक सरगर्मी भी तेज हो रही है.

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कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव के साथ ही उत्तर प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा के उपचुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही हैं, वैसे-वैसे ‘लव जेहाद’ का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. अब आरएसएस के मुखपत्रों ने ‘लव जेहाद’ का मामला खुल कर उछाल दिया है. अब तक मौखिक तौर पर उछल रहा ये विवाद पहली बार मुखपत्र तक पहुंचा है. इसे लेकर राजनीतिक सरगर्मी भी तेज हो रही है.

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‘लव जेहाद’ पर अब तक हो रही मौखिक बातें आरएसएस के मुखपत्र की सुर्खियां बनी तो राजनीतिक माहौल का गरमाना लाजिमी है. दरअसल आरएसएस का मानना है कि प्यार और शादी की आड़ में सिर्फ धर्मांतरण का खेल हो रहा है. तभी आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य में जो तस्वीर छापी गई है वो सारी कहानी खुद ही कह रही है. अरबी पहनावा, चश्मे और दाढ़ी में नकली गुलाबी दिल और चेहरे पर ओढ़ी हुई मुस्कान. बोल भी ऐसे लिखे हैं कि सीधे असर करें. कवर स्टोरी का नाम ही है ‘प्यार अंधा या धंधा.’

वहीं आरएसएस के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनाइजर के कवर पेज पर झारखंड में लव जेहाद की कथित पीड़ित तारा शाहदेव की तस्वीर है. यानी इसी खेल को चुनावी राजनीति के केंद्र में रखने की कोशिश की जा रही है, ताकि मोदी लहर के बाद अब आने वाले चुनावों में ‘लव जेहाद’ की लहर चले.

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पहली बार ‘लव जेहाद’ शब्द का इस्तेमाल पिछले दशक में केरल के वामपंथी मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन ने किया था. तब इसे बहुत तूल नहीं दिया गया. हाल ही में मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के बाद ये बात सिरे चढ़ने लगी कि मुस्लिम युवकों को इसके लिए पैसा, गाड़ियां और दूसरे इनाम दिए जाते हैं कि वो दूसरे धर्म की लड़कियों को प्यार के जाल में फंसाएं और फिर शादी कर उनका धर्मांतरण करा दें.

इन बातों को हवा पिछले महीने यूपी बीजेपी की वृंदावन में हुई कार्यसमिति की बैठक में मिली. यहां ‘लव जेहाद’ पर चर्चा क्या हुई कि ये मुद्दा चर्चा-ए-आम हो गया. इस पर संघ और बीजेपी के हर सहयोगी संगठनों के साथ ही सामाजिक जमावड़ों में भी चर्चा होने लगी. और अब तो ये लगता है कि ‘लव जेहाद’ चुनावी मुद्दा बनने की राह पर है.

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इसी महीने यूपी विधानसभा की 11 और लोकसभा की खाली पड़ी एक सीट पर उपचुनाव होना है. ये मुद्दा इसीलिए उठाया गया है, ताकि इन चुनावों के नतीजों पर इसका असर हुआ तो एक के बाद एक होने वाले विधानसभा चुनावों में इसे जमकर भुनाया जा सके. या फिर तब तक इसका अगला नया और संशोधित संस्करण भी उतारा जा सके.

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