scorecardresearch
 

मोदी सरकार की कड़वी दवा का दूसरा डोज- हर महीने 10-10 रुपये महंगी हो सकती है रसोई गैस

लगता है मोदी सरकार कड़वी दवा का दूसरा डोज देने वाली है. रेल किराए में बढ़ोतरी के बाद अब शायद रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी की तैयारी है. और बढ़ोतरी ऐसी हो सकती है कि लोगों की कमर टूट जाए. हो सकता है आने वाले दिनो में रसोई गैस के दामों में हर महीने 10 रुपये की बढ़ोतरी हो. ठीक उसी तरह जैसे डीजल की कीमतों में होती है.

Advertisement
X
नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी

लगता है मोदी सरकार कड़वी दवा का दूसरा डोज देने वाली है. रेल किराए में बढ़ोतरी के बाद अब शायद रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी की तैयारी है. और बढ़ोतरी ऐसी हो सकती है कि लोगों की कमर टूट जाए. हो सकता है आने वाले दिनो में रसोई गैस के दामों में हर महीने 10 रुपये की बढ़ोतरी हो. ठीक उसी तरह जैसे डीजल की कीमतों में होती है.

Advertisement

रसोई गैस पर सब्सिडी खत्म करने और तेल कंपनियों का घाटा कम करने के लिए सरकार के पास ढेरों प्रस्ताव हैं जिसमें से एक प्रस्ताव ये भी है कि एलपीजी की कीमत हर महीने 10 रुपये बढ़ाई जाए. ये बढ़ोतरी तब तक जारी रहेगी जब तक तेल कंपनियों का घाटा पूरा ना हो जाता है और सिलेंडर के भाव बाजार भाव तक नहीं पहुंच जाते.

अभी तो सरकार के झटके की झांकी है. जेब जलाने वाले कई फैसले बाकी हैं. आने वाले दिनों में आपकी रसोई का बजट बढ़ सकता है. हो सकता है आपको सरकार रसोई गैस के सिलेंडर के लिए ज्यादा पैसे देने हों या फिर ये भी मुमकिन है कि आपके सब्सिडी वाले सिलेंडरों की संख्या घटा दी जाए.

दरअसल, सालों से सरकार पर तेल कंपनियों के घाटे कम करने का दबाव है. जिसके लिए कई सुझाव दिए गए हैं- उनमें से कुछ ऐसे हैं-
- सिलेंडर पर सब्सिडी एक झटके में कम की जाए. या फिर सब्सिडी वाले सिलेंडर की संख्या कम की जाए या डीजल की तरह हर महीने सब्सिडी वाले सिलेंडर पर करीब 10 रुपये की बढ़ोतरी की जाए. या फिर दो विकल्पों को एक साथ मिलाकर लागू किया जाए.

Advertisement

अब पढ़िए कि रसोई गैस की वजह से तेल कंपनियों को कितना घाटा हो रहा है और सरकार पर सब्सिडी का बोझ कितना बढ रहा है. रसोई गैस के एक सिलेंडर की कीमत करीब 900 रुपये होती है जबकि लोगों को औसतन 425 रुपये अदा करने होते हैं. 475 रुपये का घाटा होता है.

मौजूदा हालात और भी खराब हैं. डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर है और इराक युद्ध की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है. इन दोनों हालातों में रसोई गैस का घाटा देखना जरूरी है.

अगर डॉलर के मुकाबले रुपया एक प्वाइंट कमजोर होता है तो एलपीजी का घाटा बढ़कर 700 करोड़ रुपये सालाना हो जाता है और अगर कच्चे तेल की कीमत में एक डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी होती है तो एलपीजी का घाटा बढ़कर 400 करोड़ रुपये सालाना हो जाता है.

पेट्रोल पर तो सरकार ने पहले ही सब्सिडी हटा दी है. डीजल में भी हर महीने 50 पैसे की बढ़ोतरी की जा रही है. रसोई गैस में सब्सिडी वाले सिलेंडर की सीमा तय करके कोशिश की गई है लेकिन इससे बात नहीं बन रही. लिहाजा सरकार कुछ और कड़े फैसले ले सकती है. हालांकि ये सरकार को तय करना है कि सब्सिडी का बोझ कम करने और तेल कंपनियों को घाटे से उबारने के लिए कौन से उपाय किए जाएं- लेकिन जानकार मानते हैं कि सरकार इस बात का ख्याल जरूर रखेगी कि जनता की जेब पर बोझ कम पड़े. लिहाजा डीजल की तरह रसोई गैस के दाम में थोड़ी थोड़ी बढ़ोतरी करके जनता की जेब पर हर महीने 10 रुपए का बोझ बढ़ाय़ा जा सकता है.

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement