दिल्ली के उपराज्यपाल कार्यालय ने मंगलवार को संसद हमले के आरोपी अफजल गुरू की दया याचिका संबंधी फाइल दिल्ली सरकार को लौटा दी. कार्यालय ने इस मामले में सरकार की टिप्पणी पर उससे और स्पष्टीकरण मांगा है.
इसके पहले दिल्ली सरकार ने मंगलवार को अफजल गुरू को मौत की सजा का समर्थन किया, लेकिन यह टिप्पणी की कि संसद पर हमले के दोषी को फांसी दिये जाने से कानून व्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों पर करीबी तौर पर गौर किया जाना चाहिये.
उपराज्यपाल कार्यालय के शीषर्स्थ सूत्रों ने बताया ‘‘हमें दिल्ली सरकार की ओर से सोमवार को अफजल गुरू की दया याचिका संबंधी फाइल मिली. हमने उनसे और स्पष्टीकरण की मांग करते हुए मंगलवार शाम उन्हें फाइल लौटा दी.’’ सूत्रों ने संकेत दिया कि इस मुद्दे पर दिल्ली सरकार की टिप्पणी स्पष्ट नहीं थी और इसलिए फाइल सरकार को लौटा दी गई.
यह पूछे जाने पर कि फाइल खास तौर पर किस वजह के कारण लौटाई गई, उन्होंने मामले को अतिसंवेदनशील बताते हुए कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के 16 बार याद दिलाने के बाद सरकार ने यह फाइल भेजी थी.
सरकार के एक शीषर्स्थ अधिकारी ने कहा ‘‘हमें उच्चतम न्यायालय के फैसले से कोई समस्या नहीं है, लेकिन फांसी दिये जाने के कानून व्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में करीबी तौर पर गौर करने की जरूरत है.’’ इस बीच, सूत्रों ने कहा कि दिल्ली सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजे एक पृथक पत्र में हालिया स्मरण का जवाब दे दिया है.
दिल्ली सरकार करीब चार वर्ष से इस मुद्दे पर हिचक रही थी और मुंबई हमलों के मामले में दोषी करार दिये गये पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को सुनायी गयी मौत की सजा के बाद यह मुद्दा फिर सुखिर्यों में आ गया.
अठारह दिसंबर 2002 को एक स्थानीय अदालत ने अफजल गुरू को संसद पर 13 दिसंबर 2001 को हमला करने का षड्यंत्र रचने, भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने और संहार करने का दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनायी थी.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरू को सुनायी गयी मौत की सजा को 29 अक्तूबर 2003 को बरकरार रखा और दो वर्ष बाद चार अगस्त 2005 को उच्चतम न्यायालय ने भी उसकी अपील खारिज कर दी. सत्र अदालत ने गुरू को तिहाड़ जेल में फांसी पर चढ़ाने के लिये 20 अक्तूबर 2006 की तारीख तय की थी.
इसके बाद अफजल गुरू ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल की जिसे टिप्पणी के लिये केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेजा गया. फिर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार के गृह विभाग को इस मुद्दे पर टिप्पणी देने के लिये रिपोर्ट भेजी.