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दयानिधि मारन को तीन दिन के भीतर CBI के समक्ष सरेंडर करने का आदेश

पूर्व दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन के लिए उस समय नई परेशानी खड़ी हो गयी जब मद्रास हाईकोर्ट ने कथित अवैध टेलीफोन एक्सचेंज मामले में उनकी अंतरिम अग्रिम जमानत सोमवार को रद्द कर दी और उन्हें तीन दिन के भीतर सीबीआई के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया.

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दयानिधि मारन (फाइल फोटो)
दयानिधि मारन (फाइल फोटो)

पूर्व दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन के लिए उस समय नई परेशानी खड़ी हो गयी जब मद्रास हाईकोर्ट ने कथित अवैध टेलीफोन एक्सचेंज मामले में उनकी अंतरिम अग्रिम जमानत सोमवार को रद्द कर दी और उन्हें तीन दिन के भीतर सीबीआई के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया.

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जस्टिस एस वैद्यनाथन ने सीबीआई के समक्ष आत्मसमर्पण करने के लिए मारन को तीन दिन की मोहलत देते हुए कहा, 'अंतरिम अग्रिम जमानत रद्द की जाती है.' न्यायाधीश ने मारन की अंतरिम अग्रिम जमानत रद्द करने के लिए सीबीआई की याचिका और अंतरिम जमानत को स्थाई बनाने की मांग करने वाली मारन की याचिका पर दलीलों को सुनने के बाद यह आदेश दिया.

सीबीआई ने मारन और अन्य के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की है. इसमें आरोप लगाया है कि 300 से ज्यादा हाई स्पीड टेलीफोन लाइनें उनके आवास से जोड़ी गईं और इसे उनके भाई कलानिधि मारन के सन टीवी चैनल को दिया गया ताकि उसकी अपलिंकिंग को सक्षम बनाया जा सके. दयानिधि मारन 2004 से 2007 तक संचार मंत्री थे.

मामले में गिरफ्तारी की आशंका से मारन ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था और जस्टिस आर सुब्बैया ने 30 जून को उन्हें इस शर्त के साथ छह सप्ताह के लिए अग्रिम जमानत दी थी कि वह एक जुलाई को सीबीआई के सामने उपस्थित हों और जांच में सहयोग करें. सीबीआई ने बाद में इस आधार पर अग्रिम जमानत को रद्द करने की मांग को लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि वह जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं.

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पिछली सुनवाई में दलीलों के दौरान मारन ने दावा किया था कि सीबीआई उनकी छवि को धूमिल करने के लिए उनकी जमानत रद्द करने की मांग कर रही है. मारन के वकील पीएस रमन ने दावा किया था कि आरोपों को साबित करने के लिए अब तक कोई सबूत पेश नहीं किया गया है और आश्चर्य जताया कि कैसे बीएसएनएल की टेलीफोन लाइनों का इस्तेमाल वीडियो का प्रसारण करने के लिए किया जा सकता है. उन्होंने कहा था, 'कैसे आप टेलीफोन लाइनों से सिनेमा का प्रसारण कर सकते हैं.' रमन ने दावा किया कि मारन की छवि को धूमिल करने की मंशा से सीबीआई आरोप लगा रही है कि उन्होंने जांच में सहयोग नहीं किया. वह भी सन समूह की सुरक्षा अनुमति को गृह मंत्रालय की ओर से खारिज किए जाने के बाद.

उन्होंने यह भी कहा कि कथित धोखाधड़ी सीबीआई के अनुसार 2011 में हुई लेकिन एफआईआर 2013 में दर्ज की गई.

एडिश्नल सॉलिसीटर जनरल जी राजगोपालन ने हालांकि कहा कि मारन से हिरासत में पूछताछ इस बात का पता लगाने के लिए महत्वपूर्ण है कि धोखाधड़ी का असली लाभार्थी कौन था और इससे सरकारी खजाने को कितना नुकसान हुआ.

सीबीआई की याचिका पर दलीलें अधूरी रहने के बाद जस्टिस वैद्यनाथन ने पांच अगस्त को मामले की सुनवाई 10 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी थी.

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भाषा से इनपुट

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