केंद्र सरकार ने 'मैगी' को लेकर नेस्ले इंडिया को उपभोक्ता आयोग में घसीटा है. कंपनी पर गलत लेवल और भ्रामक विज्ञापन का आरोप लगाते हुए उससे 640 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की गई है.
'मैगी' बनाने वाली स्विट्जरलैंड की कंपनी के खिलाफ मंगलवार को वर्ग विशेष की ओर से दावा दाखिल किया गया है. इसमें कंपनी से कथित रूप से अनुचित व्यापार व्यवहार में संलिप्तता, गलत जानकारी देने और गुमराह करने वाले विज्ञापन दिखाने के आरोप लगाए गए हैं. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने करीब तीन दशक पुराने उपभोक्ता संरक्षण कानून में एक प्रावधान का पहली बार इस्तेमाल करते हुए किसी कंपनी के खिलाफ राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (एनसीडीआरसी) के समक्ष शिकायत दर्ज कराई है.
नेस्ले की तरफ से बाजार से 'मैगी' नूडल्स को वापस लिए जाने के कई सप्ताह बाद यह कदम उठाया गया है. 'मैगी' में सीसे की अत्यधिक मात्रा और एमएसजी (मोनोसोडियम ग्लुटामेट) पाए जाने के आरोपों के कारण बाजार से उत्पाद को वापस लेना पड़ा. खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने कहा, ‘हमने इससे पहले 'मैगी' मामले में एनसीडीआरसी के समक्ष नेस्ले इंडिया के खिलाफ शिकायत की सिफारिश की थी. अंतत: हमने शिकायत दर्ज कराई है.'
कंपनियों को कड़ा संदेश देने की कोशिश
उन्होंने सरकार की तरफ से मांग की गई दंडात्मक कार्रवाई के बारे में कुछ नहीं बताया, लेकिन यह जरूर कहा कि संसद में बुधवार को पेश नए उपभोक्ता संरक्षण विधेयक से उपभोक्ताओं की शिकायतों के समाधान प्रणाली में मजबूती आएगी.
नेस्ले इंडिया के प्रवक्ता ने इस बारे में कोई टिप्पणी करने से मना करते हुए कहा कि कंपनी को इस बारे में कोई सूचना नहीं मिली है. सूत्र के मुताबिक, सरकार ने पहली बार ने कंपनियों को कड़ा संदेश देने के लिए नेस्ले इंडिया के खिलाफ वर्ग विशेष की तरफ से सामूहिक दावा दाखिल किया. इसका मकसद कंपनियों को यह संदेश देना है कि वे देश में खराब गुणवत्ता वाले उत्पाद नहीं बेच सकते और उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य को जोखिम में नहीं डाल सकते.