केंद्रीय सूचना आयोग ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को निर्देश दिया है कि महात्मा गांधी की हत्या के संबंध में दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज FIR और आरोप पत्र को सार्वजनिक किया जाए. पारदर्शिता पैनल का यह निर्देश ओडिशा के बोलांगीर जिले के निवासी हेमंत पांडा के आग्रह पर आया है.
पांडा ने गृह मंत्रालय में सात सूत्रीय आवेदन देकर बापू की हत्या की प्राथमिकी, आरोपपत्र सहित अन्य जानकारी मांगी है, जिसमें यह भी शामिल है कि क्या कानून के अनुसार बापू की पार्थिव देह का पोस्टमार्टम किया गया था. मंत्रालय ने यह आवेदन भारतीय अभिलेखागार, दर्शन समिति और गांधी स्मृति के निर्देशक के पास भेजा है. गांधी स्मृति को पहले बिड़ला हाउस कहा जाता था, जहां बापू ने आखिरी दिन बिताए थे और जहां उनकी हत्या की गई थी.
परिवार वालों की इच्छा से नहीं हुआ पोस्टमार्टम
राष्ट्रीय अभिलेखागार ने पांडा को सूचित किया है कि वह पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट 1993 और पब्लिक रिकार्ड रूल्स 1997 के प्रावधानों के तहत रखी आवश्यक सूचना हासिल करने के लिए उनके कार्यालय आ सकते हैं. गांधी स्मृति और दर्शन समिति ने उन्हें सूचित किया है कि बापू के परिवार वालों की इच्छा के मुताबिक पोस्टमार्टम नहीं किया गया था. गांधी स्मृति और दर्शन समिति ने पांडा को यह भी बताया कि 30 जनवरी 1948 को हुई महात्मा गांधी की हत्या के संबंध में दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी और आरोप पत्र के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है.
जवाब में गांधी स्मृति ने कहा है कि तुगलक रोड पुलिस थाने ने हत्या के बाद प्राथमिकी दर्ज की और जांच की थी. सूचना आयुक्त शरद सभरवाल ने बताया कि अपीलकर्ता के मुताबिक, उसने गृह मंत्रालय से सूचना मांगी और उसे वह सूचना मुहैया करानी चाहिए. उनके अनुसार, इसके बाद हमने गृह मंत्रालय के सीपीआईओ को एक बार फिर यह जांच करने के लिए कहा कि क्या प्वॉइंटर नंबर-1 (प्राथमिकी एवं आरोपपत्र) के संदर्भ में कोई सूचना उसके पास या तुगलक रोड पुलिस थाने के पास है.
सभरवाल ने कहा कि अगर गृह मंत्रालय या तुगलक रोड पुलिस थाने में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है तो मंत्रालय का सीपीआईओ पांडा को लिखित में जवाब देगा. उन्होंने बताया कि आयोग के उपरोक्त आदेशों का पालन गृह मंत्रालय के सीपीआईओ को आदेश मिलने के 30 दिन के भीतर करना है. सभरवाल ने यह भी बताया कि पांडा को राष्ट्रीय अभिलेखागार में उनके रिकॉर्ड देखने की पेशकश संबंधी सुविधा का लाभ उठाने की छूट है.
गौरतलब है कि बिड़ला हाउस में 30 जनवरी 1948 को हिंदू दक्षिणपंथी उग्रवादी नाथूराम गोडसे ने बापू की हत्या कर दी थी. तब बापू दैनिक प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए जा रहे थे. हिंदू मुस्लिम एकता के पक्षधर और इसके लिए प्रयासरत बापू पर 1934 के बाद से उनकी हत्या के लिए पांच हमले किए गए थे जो नाकाम रहे थे. गोडसे सहित आठ लोगों पर बापू की हत्या का आरोप लगा. लाल किला में विशेष अदालत में सुनवाई के बाद गोडसे और उसके साथी नारायण आप्टे को मौत की सजा दी गई और शेष को उम्र कैद हुई. मामले में विनायक सावरकर को बरी कर दिया गया.
-इनपुट भाषा से