आजादी के महज 13 साल बाद जब भारत अपनी नई-नई चुनौतियों से जूझ रहा था ठीक उसी वक्त 60 के दशक में महाराष्ट्र की राजधानी बॉम्बे (अब मुंबई) में बतौर कार्टूनिस्ट एक अखबार में काम करने वाला शख्स महाराष्ट्र की नई तकदीर लिखने का काम शुरू कर चुका था जिसे बाद में दुनिया ने बाला साहेब ठाकरे के नाम से जाना.
महाराष्ट्र में सत्ता चाहे किसी भी पार्टी की रही हो लेकिन वहां हुकूमत हमेशा बाल ठाकरे की ही रही जिसके इजाजत के बिना वहां किसी सरकार के लिए एक पत्ता तक हिला पाना असंभव सा था. महाराष्ट्र की राजनीति में कभी सत्ता में नहीं रहने के बावजूद भी वो वहां की राजनीति के सबसे प्रभावशाली और ताकतवर शख्स बने रहे.
53 साल पहले जिस शख्स ने शिवसेना की नींव रखी आज उसी बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. जब बाल ठाकरे की उम्र ढलने लगी तो उनके राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने की जिम्मेदारी शिवसेना के दो बड़े लोकप्रिय चेहरे राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के कंधों पर आई. इनमें एक उनका बेटा तो दूसरा उनका भतीजा था.
विरासत की लड़ाई राज ठाकरे को कहां तक ले गई
आज उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति के शीर्ष पर पहुंच चुके हैं और आने वाले 24 घंटों में राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. वहीं दूसरी तरफ चाचा बाल ठाकरे से बगावत कर अपनी नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाने वाले वाले भतीजे राज ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति के नेपथ्य में जा चुके हैं.
उद्धव ठाकरे आज महाराष्ट्र की राजनीति के शीर्ष पर पहुंच चुके हैं और आने वाले 24 घंटों में राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. वहीं दूसरी तरफ चाचा बाल ठाकरे से बगावत कर अपनी नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाने वाले वाले भतीजे राज ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति के नेपथ्य में जा चुके हैं.
उद्धव ठाकरे जहां राजनीतिक विरासत को छोड़कर अपने फोटोग्राफी के पैशन को फॉलो करने में लगे थे वहीं दूसरी तरफ शिवसेना समेत महाराष्ट्र के दूसरे दल भतीजे राज ठाकरे को बाल ठाकरे के राजनीतिक वारिस के तौर पर महसूस करने लगे थे.
राज ठाकरे के बोलने से लेकर चलने तक का अंदाज अपने चाचा बाल ठाकरे से मिलता था इसलिए लोग उन्हें बाल ठाकरे की विरासत के वारिस के तौर पर देखने लगे थे. दिलचस्प बात यह है कि राज ठाकरे को भी बाल ठाकरे की तरह कार्टून बनाने का बेहद शौक है.
चाचा बाल ठाकरे के हर फैसले में उनकी परछाई की तरह साथ खड़े रहने वाले राज ठाकरे को जब यह पता चला कि चाचा उनकी जगह अपने बेटे उद्धव ठाकरे को पार्टी की कमान और राजनीतिक विरासत सौंपना चाहते हैं तो दोनों के बीच मतभेद शुरू हो गए. बाल ठाकरे जहां उद्धव को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपने के पक्ष में थे वहीं राज ठाकरे शिवसेना पार्टी पर अपना नियंत्रण चाहते थे.
पार्टी बनाई लेकिन काम न आई
उद्धव ठाकरे के पार्टी प्रमुख बनने के थोड़े दिनों बाद ही टिकट बंटवारे में मनचाहा हिस्सा नहीं मिलने और सत्ता संघर्ष की वजह से आखिराकर राज ठाकरे ने खुद को शिवसेना से अलग करते हुए साल 2006 में अपनी नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन कर लिया.
पार्टी बनाने के दो साल बाद 2008 में राज ठाकरे की पार्टी ने मराठाओं की राजनीति और क्षेत्रीयता को हवा देना शुरू कर दिया. महाराष्ट्र से उत्तर भारतीयों को बाहर करने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए. इस दौरान मुंबई से लेकर महाराष्ट्र के ज्यादातर शहरों में उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसा हुई जिसमें राज ठाकरे की पार्टी के कार्यकर्ताओं का नाम सामने आया.
राज ठाकरे महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों की नौकरियों के खिलाफ आंदोलन चलाने लगे. वहीं दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना अपने पिता के समय से सहयोगी रही पार्टी बीजेपी के साथ धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी और दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र तक में शिवसेना ने अपना विस्तार जारी रखा.
नफरत हारा, उत्तर भारतीयों ने ठुकराया
साल 2006 में नई पार्टी बनाने के ठीक तीन साल बाद 2009 में जब महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए तो राज ठाकरे की पार्टी को 13 सीटों पर जीत मिली. ठाकरे की पार्टी को ज्यादातर वैसी सीटों पर जीत मिली जहां मराठी वोटरों की संख्या ज्यादा थी और वो उत्तर भारतीयों को पसंद नहीं करते थे. इससे राज ठाकरे को लगा कि उत्तर भारतीयों का विरोध करना और मराठाओं की अस्मिता की बात करना उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति में स्थापित कर देगा.
इसके बाद वो लगातार उत्तर भारतीयों के खिलाफ अपमानजक और भड़काऊ बातें करने लगे. साल 2008 में छठ पूजा को लेकर दिए उनके विवादित बयान ने काफी तूल पकड़ा जिसकी वजह से उन्हें केस का भी सामना करना पड़ा. छठ पूजा को लेकर दिए बयान के बाद उत्तर भारतीयों में उनके खिलाफ गुस्सा पनपने लगा जिसका सीधा नुकसान राज ठाकरे की पार्टी को स्थानीय निकाय चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक में होने लगा.
2009 विधानसभा चुनाव के बाद राज ठाकरे का यह दांव उल्टा पड़ना शुरू हो गया और उनकी नफरत भरी राजनीति को वहां के लोगों ने धीरे-धीरे अस्वीकार करना शुरू कर दिया.
राज ठाकरे का यहीं से राजनीतिक पतन शुरू हो गया. साल 2012 के बीएमसी चुनाव में जहां राज ठाकरे की पार्टी को 27 सीटें मिली थी वहीं 2017 के चुनाव में उन्हें सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली. थाने, कल्याण उल्लास नगर, पुणे, नासिक, नागपुर, मालेगांव, जलगांव, सांगली के निकाय चुनाव में भी साल 2012 के मुकाबले 2017 में राज ठाकरे की पार्टी को भारी शिकस्त झेलनी पड़ी. कई जगह तो उनकी पार्टी का खाता तक नहीं खुला.
पहले प्रशंसक फिर आलोचक
साल 2014 में जब देश में लोकसभा चुनाव होने वाले थे तब तत्कालीन पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की लहर देखकर राज ठाकरे भी उनके समर्थन में आ गए और उन्हें प्रधानमंत्री बनाने की वकालत करने लगे. राज ठाकरे को लगा कि बीजेपी के करीब जाने पर वह महाराष्ट्र में शिवसेना का विकल्प बन सकते हैं लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. चुनावी साल बीतने के बाद जो राज ठाकरे पीएम मोदी के प्रशंसक हुआ करते थे वहीं उनके आलोचक हो गए जो महाराष्ट्र में भी बीजेपी समर्थकों को नागवार गुजरी.
महाराष्ट्र में साल 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी मनसे ने विधानसभा की 288 में से 220 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा. उनकी पार्टी महज एक सीट पर जीत दर्ज कर पाई. जबकि उसी चुनाव में शिवसेना ने 63 सीटों पर शानदार जीत दर्ज की और महाराष्ट्र की सरकार में बीजेपी की सहयोगी पार्टी बन गई.
बीजेपी के साथ बात नहीं बनती देख साल 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले राज ठाकरे ने अनौपचारिक तौर पर कांग्रेस से गठबंधन की कोशिश शुरू की लेकिन उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि को देखते हुए वोट बैंक खिसक जाने के डर से कांग्रेस ने भी मनसे से किनारा कर लिया. हालांकि पहले राज ठाकरे ने ऐलान किया कि वो राज्य के 100 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे लेकिन बाद में उन्होंने लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव से भी किनारा कर लिया.
बीजेपी से रार, कांग्रेस-एनसीपी से प्यार
वहीं लोकसभा चुनाव की तरह 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी शिवसेना ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया. बीजेपी ने जहां 105 सीटों पर जीत दर्ज की वहीं शिवसेना ने एनडीए गठबंधन में रहते हुए 56 सीटों पर जीत दर्ज की और उसके बाद महाराष्ट्र में बीजेपी के सामने ढाई-ढाई साल के सीएम पद को लेकर शर्त रख दी.
जब बीजेपी ने सीएम पद के बंटवारे से साफ तौर पर इनकार कर दिया तो उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार गठन करने और खुद की पार्टी का सीएम बनाने की राह ढूंढ निकाली. करीब एक महीने के सियासी दांवपेंच और उठापटक के बाद आखिरकार शिवसेना इसमें सफल हो गई और अब गुरुवार को उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे वहीं राज ठाकरे आज कहां हैं और क्या कर रहे हैं इसकी किसी को कोई खबर नहीं है.