सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पहली शादी अस्तित्व में होने का तथ्य छिपाकर दूसरी बार शादी करना गैरकानूनी है लेकिन दूसरी पत्नी को ‘कानूनी रूप से विवाहित पत्नी’ माना जायेगा और वह अपने तथा इस दाम्पत्य जीवन से होने वाले बच्चों के लिये हिन्दू विवाह कानून के तहत पति से गुजारा भत्ते की हकदार है.
न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई और न्यायमूर्ति ए के सीकरी की खंडपीठ ने कहा कि यदि इस तरह से कानून की व्याख्या नहीं की गयी तो ‘इसका मतलब पति को पत्नी से छल करने का प्रीमियम देना होगा.’ न्यायाधीशों ने कहा कि दूसरी पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इंकार करने संबंधी शीर्ष अदालत का पहले का निर्णय उन मामलों में लागू नहीं होगा जहां व्यक्ति ने पहले विवाह के बारे में महिला को अंधेरे में रखते हुये दूसरी बार शादी की हो.
न्यायाधीशों ने कहा कि यदि यह व्याख्या स्वीकार नहीं की गयी तो यह पत्नी से छल करने का पति को लाभ देना होगा. इसलिये दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत कम से कम गुजारा भत्ते का दावा करने के लिये ऐसी महिला को कानूनी ब्याहता पत्नी मानना होगा.
न्यायालय ने इस मामले में बंबई उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ व्यक्ति की अपील खारिज करते हुये यह व्यवस्था दी. उच्च न्यायालय ने इस व्यक्ति को दूसरी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था क्योंकि उसने पहली शादी के अस्तित्व में होने की बात छुपाई थी.
न्यायाधीशों ने कहा कि उनकी राय में आधव और सविता बेन के मामले में शीर्ष अदालत का निर्णय सिर्फ उन्हीं परिस्थितियों में लागू होगा जहां महिला पहली शादी के अस्तित्व में होने की जानकारी के बावजूद ऐसे व्यक्ति से शादी करती है. ऐसे मामलों में उसे यह जानना चाहिए कि ऐसे व्यक्ति से दूसरी शादी की अनुमति नहीं है और हिन्दू विवाह कानून के तहत ऐसा करना निषेध है. इसलिए उसे इसके परिणाम भुगतने होंगे.
न्यायालय ने कहा कि यह निर्णय उन मामलों में लागू नहीं होगा जहां एक व्यक्ति पहले विवाह के अस्तित्व में होने के तथ्य के बारे में महिला को अंधेरे में रखते हुये दूसरी बार शादी करता है.