जब कारगिल में विजय दिवस मनाने सारा ज़माना जुटा है, तो प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री ने दिल्ली में ही शहीदों को श्रद्धांजलि देने की रस्म अदा कर ली. देशप्रेम पर लंबे-चौड़े भाषण देने वाले हमारे नेताओं को शायद कारगिल जाना उतना ज़रूरी नहीं लगा.
सियासत से नहीं मिल रही फुरसत!
यह तारीख़ हर साल आती है और हर हिंदुस्तानी के हाथ उठ जाते हैं उन बहादुरों को सलाम करने के लिए, जिन्होंने देश की हिफ़ाज़त के लिए ख़ुद को मिटा दिया. आज देश के कोने-कोने से लोग करगिल पहुंचे हैं, लेकिन हमारे नेता यहां आने की ज़हमत नहीं उठा पाए. इन्हें शायद सियासत से फ़ुरसत नहीं मिल रही है.
नेताओं से ज्यादा उम्मीद भी नहीं
वैसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और रक्षामंत्री एके एंटनी ने सुबह-सुबह ही इंडिया गेट जाकर दिल्ली में ही कारगिल के शहीदों को श्रद्धांजलि दे दी. अन्य कई नेता, ऐसी ही काम चला लेंगे. सच तो यह है कि शहीदों के परिजन राजनेताओं से ज़्यादा उम्मीद भी नहीं करते.
शहीदों के परिजनों को है भरोसा
करगिल की जंग अटल बिहारी वाजपेयी के राज में जीती गई थी और बीजेपी इस जीत पर अपनी पीठ भी थपथपाती रही है. यूपीए के राज में विजय दिवस को नज़रअंदाज़ करने के पीछे कहीं, यही वजह तो नहीं? बहरहाल, शहीदों के रिश्तेदार इतने से ही ख़ुश हैं कि सेना के लोग विजय दिवस की अहमियत को बख़ूबी समझते हैं.