केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने मंगलवार को सामूहिक बलात्कार कांड की पीड़ित 23 वर्षीय छात्रा की पहचान सार्वजनिक करने की वकालत की और कहा कि उसका नाम गुप्त रखने से कौन-सा हित सध रहा है. उनके इस बयान से विवाद खड़ा हो गया है. केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री थरूर ने यह भी कहा कि यदि पीड़िता के माता-पिता को आपत्ति न हो तो संशोधित बलात्कार विरोधी कानून का नाम उसी के नाम पर रखा जाए.
थरूर ने ट्विटर पर कहा, 'आश्चर्य होता है कि दिल्ली के सामूहिक बलात्कार कांड की पीड़िता का नाम गुप्त रख कर ‘पता नहीं’ कौन सा हित सधा है. क्यों न एक ऐसे वास्तविक व्यक्ति के रूप में उसका नाम लिया जाए और उसे सम्मान दिया जाए जिसकी अपनी एक पहचान है.' अपने मन की बात रखने के लिए मशहूर केंद्रीय मंत्री ने कहा, 'यदि उनके अभिभावक को आपत्ति न हो तो उसे सम्मानित किया जाए और उसी के नाम पर संशोधित बलात्कार विरोधी कानून का नाम रखा जाए. वह एक मनुष्य थी, जिसका अपना नाम था न कि वह एक प्रतीक थी.
कानून के तहत बलात्कार पीड़िता का नाम उद्घाटित नहीं किया जा सकता है. बलात्कार पीड़िता का नाम प्रकाशित करने या उससे नाम को ज्ञात बनाने से संबंधित कोई अन्य मामला आईपीसी की धारा 228 ए के तहत अपराध है. थरूर का बयान ऐसे वक्त में आया है जब दिल्ली पुलिस ने ऐसी सामग्री प्रकाशित करने पर एक अंग्रेजी दैनिक के खिलाफ मामला दर्ज किया है जिससे पीड़िता की पहचान सार्वजनिक हो सकती है.
थरूर के बयान से ट्विटर पर बहस छिड़ गई है. जहां कुछ लोगों ने उनका समर्थन किया है, वहीं कुछ अन्य ने इस सुझाव पर प्रश्न खड़ा किया है. चिरदीप नामक एक व्यक्ति ने पूछा है, 'अपराध न्याय प्रणाली में असल परिवर्तन करने के बजाय सम्मान प्रदान करने, मूर्ति बनाने मंदिर बनाने जैसी बातें क्यों कर रहे हैं आप.' एक अन्य व्यक्ति अनिल वनवारी ने लिखा है, 'एक अच्छा सुझाव है. यही बात मैंने चार दिन पहले कही थी.'
सामाजिक कार्यकर्ता किरण बेदी ने ट्विटर पर कहा, 'मैं बलात्कार पर नया कानून का नाम उसके असली नाम पर या ‘निर्भया’ नाम पर रखने के थरूर के सुझाव का समर्थन करती हूं. ऐसा अमेरिका में हो चुका है. ऐसा कर हम बलात्कार के कृत्य को नहीं, बल्कि संघर्ष एवं जिंदगी जीने की उसकी इच्छा को अमर कर देंगे. इस तरह हम दाग हटा सकते हैं.'
उल्लेखनीय है कि 16 दिसंबर को एक चलती बस में छह व्यक्तियों ने लड़की का सामूहिक बलात्कार किया था और उस पर इस कदर दरिंदगी की थी कि लगभग एक पखवाड़े तक जिन्दगी और मौत के बीच झूलने के बाद उसने 29 दिसंबर को सिंगापुर के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया.