राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव के मुद्दे पर बंगाल की सीएम ममता ने 10 जनपथ जाकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की. इसके बाद विपक्ष का सियासी दांव खेलते हुए ममता ने गेंद सरकार के पाले में फेंकने की कोशिश की. ममता ने कहा कि राष्ट्रपति के नाम पर आम सहमति के लिए मोदी सरकार को विपक्ष से बात करनी चाहिए.
इसके ठीक पहले नीतीश कुमार सर्वसम्मति से प्रणब को ही दूसरा कार्यकाल देने की वकालत पहले ही कर चुके हैं. जबकि, कांग्रेस खुद अब तक प्रणब के नाम पर खुलकर बोलने से बच रही है. कांग्रेस प्रवक्ता सुरजेवाला ने प्रणब के सवाल पर कहा, "सोनिया और राहुल विपक्षी दलों से बात करके एक आम सहमति का उम्मीदवार उतारने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए अभी किसी एक नाम पर कोई टिप्पणी करना मेरे लिए सही नहीं होगा."
सूत्रों के मुताबिक प्रणब मुखर्जी पहले ही साफ कर चुके हैं कि वो सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की सहमति से ही दूसरा कार्यकाल ले सकते हैं, चुनाव लड़कर नहीं. इसीलिए कांग्रेस खुद उनका नाम बोलकर उन पर कांग्रेस का उम्मीदवार होने का ठप्पा नहीं लगाना चाहती. कांग्रेस को लगता है कि बीजेपी अपनी पसंद के उम्मीदवार को ही रायसीना हिल की गद्दी पर बिठाना चाहती है और अगर विपक्ष उसके उम्मीदवार का समर्थन ना भी करे तो भी वो आसानी से अपना राष्ट्रपति बना सकती है.
इसलिए विपक्ष का पहला सियासी दांव गैरकांग्रेसी दलों के जरिए प्रणब मुखर्जी का नाम उछालकर मोदी सरकार पर दबाव बनाने का है वरना प्रणब को फिर कमान मिल जाये इससे ज्यादा बेहतर उसके लिए कुछ नहीं है. साथ ही वो एक संदेश भी देना चाहता है कि वो तो सर्वसम्मति से उम्मीदवार चुनने के हक में हैं और वो भी उस प्रणब मुखर्जी को, जिनका कार्यकाल अभी तक बेदाग और दलगत राजनीति से इतर रहा है.
इसी रणनीति के तहत पहले सोनिया से मुलाकात करने वाले नीतीश ने प्रणब का नाम उछाला तो ठीक उसके अगले दिन सोनिया से मुलाकात के बाद ममता ने सरकार की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा है कि अगर सर्वसम्मति से राष्ट्रपति का चुनाव करना है तो सरकार को विपक्ष से बात करनी चाहिए.
विपक्ष को इस बात का भी एहसास है कि प्रणब कांग्रेस के सक्रिय नेता रहे हैं जबकि कलाम साहब तो किसी दल से नहीं जुड़े थे और सत्ता पक्ष और विपक्ष की सहमति से प्रणब की तरह दोबारा कार्यकाल लेने को तैयार थे, चुनाव लड़कर नहीं. उस वक्त यूपीए ने बात नहीं मानी थी और प्रतिभा पाटिल को मैदान में उतारा था तब विपक्षी उम्मीदवार भैरों सिंह शेखावत को हराकर प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति बनीं थीं. तब शिवसेना ने एनडीए की बजाय यूपीए उम्मीदवार को वोट दिया था, ठीक वैसे ही आज सत्ता पलट चुकी है तो सियासी हालात भी बदलना लाजमी ही है.