रेल मंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की वाम सरकार के खिलाफ दबाव को और बढ़ाते हुए मंगलवार को केन्द्र से वहां राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की.
पश्िचम बंगाल सरकार को बर्खास्त कर देना चाहिए
गृह मंत्री पी चिदंबरम से यह मांग करने वाली ममता ने उनसे मुलाकात के बाद संवाददाताओं को बताया, ‘‘केन्द्र को पश्चिम बंगाल सरकार को बर्खास्त करना चाहिए और वहां राष्ट्रपति शासन लागू करना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह आवश्यक है.’’ उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार को राज्य में कानून व्यवस्था बहाल करने के लिए पहले धारा-355 का इस्तेमाल करना चाहिए और फिर धारा-356 लागू करनी चाहिए. ममता ने आरोप लगाया कि राज्य मशीनरी की मदद से माकपा कैडर बंगाल में लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं. राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के अलावा उन्होंने यह मांग भी की कि राज्य के शस्त्रागार से ‘‘माकपा के गुंडों ’’ द्वारा कथित रूप से लूटे गये हथियारों की बरामदगी के लिए सेना का इस्तेमाल किया जाए.
केंद्र मदद देने को तैयार
ममता पश्चिम बंगाल के अपहृत कांस्टेबल शब्बीर मुल्ला और कान्हा गोदई के परिजनों के साथ चिदंबरम से मिलने गयी थीं. इन दोनों का जुलाई में माओवादियों ने कथित रूप से अपहरण कर लिया था. उन्होंने कहा, ‘‘इन कांस्टेबलों के अपहरण के तीन महीने हो चुके हैं लेकिन बंगाल पुलिस उनका पता लगाने का कोई प्रयास नहीं कर रही है. इसीलिए मैंने उनके मामले की सुनवाई के लिए चिदंबरम से गुहार लगायी है.’’ गृहमंत्री के साथ अपनी बैठक के नतीजे के बारे में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने कहा, ‘‘मैंने उन्हें सब जानकारी दे दी है. चिदंबरम ने कहा है कि कांस्टेबलों का पता लगाने के लिए जो भी मदद चाहिए, केन्द्र देने के लिए तैयार है.’’
राज्य में जारी है तानाशाही
उन्होंने कहा, ‘‘ मैं गृह मंत्री पर भरोसा करती हूं. वह एक सक्षम मंत्री हैं. मुझे उम्मीद है कि वह संविधान के अनुरूप काम करेंगे.’’ बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य पर प्रहार करते हुए ममता ने कहा कि माओवादी और माकपा भाई-भाई हैं और मुख्यमंत्री राज्य में माओवादी आंदोलन के स्तंभ हैं. यह पूछने पर कि क्या वह केन्द्र से मायूस हुई हैं, रेल मंत्री ने कहा, ‘‘हम न्याय के लिए लोकतंत्र का दरवाजा खटखटा रहे हैं.’’ उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में पिछले 32 साल से कोई कानून व्यवस्था नहीं है. ममता ने दावा किया कि माकपा के कैडर लालगढ़ में शिविर लगा रहे हैं, जहां निषेधाज्ञा लागू है. उन्होंने कहा कि जब वहां माकपा के सशस्त्र कैडर शिविर लगा रहे हैं तो अन्य राजनीतिक दल वहां कैसे जाकर राजनीतिक गतिविधियां कर सकते हैं ? संयुक्त अभियान का क्या नतीजा हुआ ? यह लोकतंत्र का मजाक है, तानाशाही बदस्तूर जारी है.