समाज में हाल के दिनों में ‘बढ़ती असहिष्णुता’ के विरोध में अपना अवॉर्ड लौटा रहे लेखकों की फेहरिस्त में शामिल होते हुए मशहूर बांग्ला कवि मंदाक्रांता सेन ने भी कहा है कि वह देश में सांप्रदायिक हमलों के विरोध में अपना साहित्य अकादमी युवा रचनाकार विशेष पुरस्कार लौटा देंगी .
सेन ने कहा कि दादरी की घटना और लेखकों तथा तर्कवादियों पर हमलों के विरोध में वह ऐसा कर रही हैं. सेन को 2004 में यह सम्मान दिया गया था.
विभिन्न मुद्दों पर जताया विरोध देश में बढ़ते सांप्रदायिक माहौल का हवाला देकर इन दिनों साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का सिलसिला होड़ की हद तक पहुंच गया है. कृष्णा सोबती और अरुण जोशी के अवॉर्ड लौटाने के फैसले के बाद नयनतारा सहगल और अशोक वाजपेयी सहित कम से कम 25 लेखक अपने अकादमी अवॉर्ड लौटाने का ऐलान कर चुके हैं और पांच लेखकों ने साहित्य अकादमी में अपने आधिकारिक पदों से इस्तीफा दे दिया है. कन्नड़ लेखक
एमएम कलबुर्गी की हत्या के विरोध में अब तक 12 लेखक साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा चुके हैं. साहित्य अकादमी ने इन घटनाक्रमों पर चर्चा के लिए 23 अक्टूबर को आपात बैठक बुलाई है.
पुरस्कार की राशि को लेकर विवाद हालांकि, जहां सरकार की ओर से पुरस्कार लौटाने की इन घटनाओं पर सफाई दी जा रही है वहीं ये जानकर आपको हैरानी होगी कि पुरस्कार लौटाने की घोषणा करने वालों में ज्यादातर लेखक ऐसे हैं, जिन्होंने पुरस्कार लौटाने की घोषणा कर सनसनी तो फैला दी, लेकिन साहित्य अकादमी को इस बारे में चिट्ठी तक नहीं लिखी है.
जहां एक ओर देश में पुरस्कार लौटाने वालों की
संख्या दो दर्जन तक पहुंच चुकी है , वहीं इनमें से सिर्फ इक्का-दुक्का ही हैं जिन्होंने अकादमी पुरस्कार का स्मृति चिह्न और पुरस्कार राशि लौटाने की हिम्मत दिखाई है. साहित्यकारों को साहित्य अकादमी पुरस्कार के रूप में वर्तमान समय में एक लाख रुपये, एक शॉल और स्मृति चिह्न दिया जाता है.
सिर्फ आठ ने लिखी चिट्ठी साहित्य अकादमी को अब तक आधिकारिक तौर पर सिर्फ आठ साहित्यकारों की ओर से पुरस्कार लौटाने के फैसले की चिट्ठी मिली है. इनमें से भी सिर्फ तीन उदय प्रकाश, अशोक वाजपेयी और अमन सेठी ने पुरस्कार राशि और स्मृति चिह्न लौटाया है.