पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के करीबी सहायक रहे आरके धवन ने इमरजेंसी के दौर के कुछ अहम खुलासे किए हैं. धवन ने मेनका गांधी के बारे में कहा कि वे संजय गांधी के साथ हर जगह जाती थीं, इसलिए उन्हें हर उस चीज की जानकारी थी, जो संजय ने आपातकाल के दौरान किया था.
धवन ने कहा कि मेनका गांधी जानती थीं कि संजय क्या कर रहे हैं. उन्हें पूरी जानकारी थी. उन्होंने कहा कि अब वह यह दावा नहीं कर सकतीं कि उन्हें कुछ पता नहीं था. मेनका अब बीजेपी में हैं और केंद्रीय मंत्री हैं.
बहुमत के अनुमान पर चुनाव का आदेश
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लागू किए जाने के बाद साल 1977 में एक खुफिया रिपोर्ट में बहुमत मिलने का पूर्वानुमान जताए जाने के कारण चुनाव का आदेश दिया था और चुनाव हारने के बाद राहत भी महसूस की थी.
धवन ने यह भी कहा कि पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे आपातकाल के शिल्पकार थे, जिन्होंने इंदिरा गांधी पर देश में व्याप्त हालात पर काबू करने के लिए कुछ कठोर कदम उठाने के लिए जोर डाला था. धवन ने कहा कि इंदिरा गांधी को ऐसा कभी नहीं लगा कि उनकी हार के लिए किसी भी तरह संजय गांधी जिम्मेदार थे. वह आपातकाल के दौरान अपने बेटे की गतिविधियों से वाकिफ भी नहीं थीं और उन तक कभी संजय के खिलाफ कोई शिकायत पहुंची भी नहीं.
CM व नौकरशाहों को इशारों पर नचाते थे संजय
इंदिरा गांधी के पूर्व सहायक धवन ने इंडिया टुडे टीवी पर करन थापर के एक कार्यक्रम में कहा कि संजय गांधी को कुछ मुख्यमंत्री और नौकरशाह अपने इशारों पर चलाते थे और यह कह कर उन्हें उनकी मां की तुलना में अधिक शक्तिशाली होने का अहसास कराते थे कि वह ज्यादा भीड़ खींचते हैं. यह बात संजय के मन में घर कर गई थी.
इंदिरा गांधी के निजी सचिव रहे आरके धवन ने कहा इंदिरा रात का भोजन कर रही थीं, तभी मैंने उन्हें बताया कि वह हार गई हैं. उनके चेहरे पर राहत का भाव था. उनके चेहरे पर कोई दुख या शिकन नहीं थी. उन्होंने कहा था, 'भगवान का शुक्र है, मेरे पास अपने लिए समय होगा.'
इंदिरा के साथ न्याय नहीं कर रहा इतिहास!
धवन ने दावा किया कि इतिहास इंदिरा के साथ न्याय नहीं कर रहा है और नेता अपने स्वार्थ के चलते उन्हें बदनाम करते हैं. उन्होंने कहा कि वह राष्ट्रवादी थीं और अपने देश के लोगों से उन्हें बहुत प्यार था. उन्होंने कहा उन्हें उस आईबी रिपोर्ट पर भरोसा था कि वह बहुमत हासिल करेंगी. पीएन धर ने उन्हें खुफिया ब्यूरो की एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसके तत्काल बाद उन्होंने चुनावों की घोषणा कर दी थी. यहां तक कि एसएस रे ने भी पूर्वानुमान जताया था कि इंदिरा को 340 सीटें मिलेंगी.
धवन ने कहा कि रे ने आपातकाल के बहुत पहले इंदिरा को पत्र लिख कर कुछ कड़े कदम उठाने का सुझाव दिया था. उन्होंने यह भी कहा था कि तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को आपातकाल लागू करने के लिए उद्घोषणा पर हस्ताक्षर करने में कोई आपत्ति नहीं है.
धवन ने बताया कि जब इंदिरा ने जून 1975 में अपना चुनाव रद्द किए जाने का इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश सुना था, तो उनकी पहली प्रतिक्रिया इस्तीफे की थी और उन्होंने अपना त्यागपत्र लिखवाया था. उन्होंने कहा कि वह त्यागपत्र टाइप किया गया, लेकिन उस पर हस्ताक्षर कभी नहीं किए गए. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी उनसे मिलने आए और सबने जोर दिया कि उन्हें इस्तीफा नहीं देना चाहिए.