दुस्साहस क्या है? पहले मुझे लगा कि केजरीवाल का दिल्ली की कुर्सी छोड़ बनारस से लड़ना दुस्साहस है. फिर मुझे लगा भाजपा का दिल्ली चुनावों के लिए घोषणापत्र न लाना दुस्साहस है. पर जिस दिन मैंने कांग्रेस को दिल्ली चुनावों के लिए घोषणापत्र निकालते देखा, मुझे सारे सवालों के जवाब मिल गए. इससे बड़ा दुस्साहस और क्या हो सकता है? वक्त बदलते देर नहीं लगती. ऐसा किरण बेदी को देखकर नहीं लगता, बल्कि कांग्रेस की हालात देख लगता है.
पिछले दिल्ली चुनावों में कांग्रेस आम आदमी पार्टी को ‘वोटकटवा’ कहती थी. इस बार आम आदमी पार्टी वही बात दोहरा सकती है. पिछले साल के मुकाबले दिल्ली में कांग्रेस ऐसी उपेक्षित लग रही है, जैसे गर्मियों में रेनकोट. बावजूद इसके, कांग्रेस के नेता चुनावी रैलियां कर रहे हैं, जो साफ दिखाता है कि कांग्रेस में गांधीवादी भले कम बचे हों, आशावादी बहुत हैं.
ऐसे मौके पर जब पार्टियां मेनिफेस्टो ला रही हैं, नहीं ला रही हैं, जबरिया ला रही हैं, उस वक्त दिल्ली के बेहद आम आदमी (बिना टोपी वाले!) ने स्वप्रेरणा से घोषणापत्र जारी करते हुए तमाम राजनैतिक दलों के सामने कुछ मांगे रखीं हैं. आगे जानिए, क्या है बेहद आम आदमी पार्टी (BAAP) के घोषणापत्र में ख़ास...
1. दिल्ली में हो हर छह महीने में चुनाव
पहले विधानसभा के चुनाव, फिर लोकसभा चुनाव और अब फिर से विधानसभा चुनाव. पिछले एक-डेढ़ साल से दिल्ली ने सिर्फ चुनाव ही देखे हैं, जिसके चलते वहां रहने वालों को चुनावों की आदत पड़ गई है. शर्मा जी किसी नेता का मुंह देखे बिना घर से नहीं निकलते. बच्चे चुनावी चोंगों के हल्ले से डरे बिना दूध नहीं पीते. इसलिए ये सुनिश्चित किया जाए कि कम से कम हर छह महीने में चुनाव हों और सबका मन लगा रहे.
2. जनलोकपाल का नाम मत लेना
लाठी-डंडे खाए, दो-दो महीने न नहाने वाले बालक वाटर कैनन से जूझे, दस उंगलियों में बारह नेलपॉलिश लगाने वाली बालिकाएं चप्पल फटकारते जेल गईं. नतीजे में हाथ आया अन्ना जी का अंगोछा. दिल्ली के असली वाले आम आदमी ने पिछले कुछ सालों में जनलोकपाल के नाम पर इतनी नौटंकी देखी है कि अब तो जनलोकपाल बिल के नाम से हंसी छूट जाती है. इसलिए बाकी कुछ भी करना, पर प्लीज जनलोकपाल का नाम मत लेना.
3. मुफ्त पानी की नहीं दरकार
दिल्ली में तीन गलबजुआ दल भए, उनके हिसाब से एक सबसे बड़ी पार्टी, एक सबसे पुरानी पार्टी, एक सबसे भली पार्टी, पर तीनों का दिल्ली की जनता के प्रति रवैया उतना ही उपेक्षापूर्ण रहा, जितना भंडारे की सब्जी के आलू छीलते वक्त छिलकों के प्रति रसोइए का, इसलिए दिल्ली की जनता ने फैसला लिया है, छह सौ लीटर या छह हजार लीटर मुफ्त पानी लेने की बजाय इस चुनाव वो इन तीनों दलों को तीन चुल्लू पानी देंगे.
4. हों ट्रैफिक सुधार
ट्रैफिक सुधार से तात्पर्य दस नई बसें, चार सड़कें, पांच फ्लाईओवर नहीं हैं, बल्कि दो किलोमीटर के चार सौ मांगने वाले ऑटोवालों पर लगाम लगे. मेट्रो में महिलाओं की सीट पर जा धंसने वाले पुरुषों पर कार्रवाई हो. भले सीसीटीवी कैमरे नए न लगें, लेकिन जो लगे हों, वो ढंग से काम करें और सबसे खास, मौका मिलते ही वाहनों से सिर निकालकर पान की पीक प्रक्षेपित करने वालों पर लगाम लगाने के लिए सरकार खास जोर लगाए.
5. फ्री वाई-फाई चाहिए ही चाहिए
फ्री वाई-फाई की बात कर राजनैतिक दलों ने दिल्ली की जनता के हाथों अपनी टांग पकड़ा दी है, जिसे वो जब चाहें, खींच सकते हैं...तो ये तय रहा कि सरकार चाहे जिसकी बने, फ्री वाई-फाई तो जरूर मिले.
(आशीष मिश्र पेशे से इंजीनियर और फेसबुक पर सक्रिय व्यंग्यकार हैं.)