बिहार में दलित पॉलिटिक्स एक नई करवट ले रही है. और इस उथल-पुथल को शुरू किया है जीतन राम मांझी ने. राज्य में दलित वोटबैंक की पॉलिटिक्स रामविलास पासवान कर रहे थे. लेकिन मांझी न सिर्फ उनसे एक कदम आगे बढ़ गए, बल्कि अपने सियासी फैसलों से बिहार में नया ही अध्याय लिख दिया. नतीजा यह हुआ कि दीगर पार्टियों के नेता भी उनसे प्रभावित हैं, और उनके फैसलों से उत्साहित हैं. खासतौर पर पप्पू यादव और रमई राम.
जेडीयू और आरजेडी में बहुत से नेता हैं, जिन्हें अगले चुनाव में अपनी पार्टियों की हालत पतली दिख रही है. खासतौर पर मांझी प्रकरण के बाद. राष्ट्रीय जनता दल के सांसद पप्पू यादव ने तो इस विवाद की शुरुआत में ही कह दिया था कि मांझी को हटाना सीधे बीजेपी को निमंत्रण देना होगा. वे समझ गए हैं कि बिहार की राजनीति गरीबों और अल्पसंख्यकों के इर्द-गिर्द ही घूमती है. अब तक बिहार में दलित मुख्यमंत्री न होना खटक नहीं रहा था. लेकिन जब किसी को बना दिया तो हटाना राजनीतिक रूप से खतरनाक होगा. यादव अब दलितों को अपनी ओर मोड़ने के लिए कह रहे हैं कि कोई भी पार्टी दलित नेता पसंद नहीं करती. खबर है कि वे जल्द ही लालू यादव को अपना इस्तीफा भेज सकते हैं. ये कयास ही सही, लेकिन हो सकता है कि पप्पू यादव आने वाले चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो जाएं. उनकी पत्नी रंजीत रंजन, जो सुपौल से कांग्रेस सांसद हैं, रास्ता तो उनके लिए भी खुल जाएगा.
बिहार के एक और बड़े नेता हैं रमई राम. जेडीयू के विधायक और नीतीश सरकार में मंत्री हैं. लेकिन इन दिनों नाराज हैं. नीतीश के ऑफिस संभाल लेने के बाद उनके सारे मंत्रियों ने कामकाज शुरू कर दिया है, लेकिन रमई राम ऑफिस नहीं आ रहे हैं. वे उपमुख्यमंत्री का पद मांग रहे हैं. रमई राम इससे पहले लालू यादव और राबड़ी देवी की कैबिनेट में भी रह चुके हैं. मांझी प्रकरण के बाद उनका भी आत्मविश्वास बढ़ा है. वे मांझी सरकार में भी परिवहन मंत्री थे और नीतीश ने भी उन्हें वही मंत्रालय दिया है. लेकिन रमई राम को अब कुछ बड़ा चाहिए. मांझी की तरह वे भी महादलित हैं.
दरअसल, बिहार में महादलित का मुद्दा कभी उतना गर्म नहीं रहा, जितना उसे मांझी ने कर दिया है. मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने को भी उन्होंने इसी रूप में दिखलाया, जैसे ये दलित का अपमान हो. फिर कुर्सी छोड़ने से मना कर दिया और एक के बाद एक ऐसे फैसले किए जिससे सभी के समीकरण बिगड़ गए.
1. 2008 में नीतीश कुमार ने ढाई लाख महादलित परिवारों को तीन डेसीमल [1306 वर्ग फीट] भूमि देने को कहा, 50 हजार को मिली भी. मांझी ने इसे बढ़ाकर पांच डेसीमल कर दिया.
2. कार्यकाल के अंतिम समय के दौरान मांझी ने महादलितों और दलितों के बीच अंतर को कम किया. पासवान जाति को महादलित के रूप में मान्यता देकर. इस फैसले पर रामविलास पासवान ने नीतीश को चुनौती दी है कि यदि उनमें हिम्मत है तो वे मांझी के इस फैसले को पलटकर दिखाएं.
3. मांझी ने दो माह पहले फैसला लिया था कि एससी व एसटी छात्राओं से स्नातक की पढ़ाई के दौरान कोई फीस नहीं ली जाएगी. महिला मतदाताओं के लिए यह योजना जाति विशेष के लिए देखी जा रही थी. नीतीश कुमार इस फैसले को रद्द करते हैं तो यह फैसला महादलितों को उनके खिलाफ कर सकता है.
4. टोला सेवक और विकास मित्र के रूप में नीतीश कुमार ने महादलित के लोगों को रखने का फैसला किया था, मांझी ने इन्हें 25 वर्ष तक काम देने का फैसला लिया.
मांझी ने बिहार की राजनीति को नई दिशा दी है. चुनाव आते-आते हो सकता है कि मांझी की राह पर चलने वालों को कुनबा बढ़ता जाए. ये जेडीयू और आरजेडी के लिए बुरी खबर होगी.