प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि पाकिस्तान के साथ सीमा दोबारा नहीं खींची जा सकती, लेकिन दोनों देश साथ काम कर इसे अमन की सरहद बना सकते हैं.
मनमोहन सिंह ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘मैं सार्वजनिक तौर पर कह चुका हूं कि सीमा दोबारा नहीं खींची जा सकती, लेकिन हम दोनों देश साथ मिलकर काम कर सकते हैं, ताकि यह अमन की सरहद बन सके, जिससे अवाम की सतह पर मिलना हो सके और उन्हें इस बात की चिंता नहीं हो कि वह सरदह के किस ओर खड़े हैं.’’ दिल्ली में लिया गया यह साक्षात्कार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के वाशिंगटन पहुंचते ही प्रसारित किया.
सिंह से यह पूछा गया था कि क्या वह पाकिस्तान के साथ रचनात्मक बातचीत की कोई संभावना देखते हैं क्योंकि वह पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के पद छोड़ने से पहले उनके साथ किसी तरह के समझौते के कुछ करीब थे. इसके जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर मुक्त कारोबार हो, लोगों के बीच परस्पर संपर्क हो और दोनों देश दोनों तरफ के लोगों को गरिमापूर्ण तथा आत्मसम्मान के साथ जीने में मदद करने के लिये आपसी प्रतिस्पर्धा करें तो ऐसा हो सकता है. ये मुद्दे हैं जिन पर हम चर्चा कर सकते हैं और किसी समझौते पर पहुंच सकते हैं.
उधर, इस्लामाबाद में पाकिस्तान के विदेश विभाग के प्रवक्ता अब्दुल बासित ने कहा, ‘‘जम्मू-कश्मीर विवादित क्षेत्र है जिसे संयुक्त राष्ट्र के प्रासंगिक प्रस्तावों तथा जम्मू कश्मीर की जनकांक्षाओं के अनुरूप हल होने का इंतजार है.’’ बासित ने कहा, ‘‘भारत विवाद से जुड़े पक्षों में से एक है. लिहाजा, वह विवाद के दर्जे में एकतरफा बदलाव नहीं कर सकता या कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार से साफ तौर पर विपरीत पूर्व शर्तें नहीं रख सकता.’’ पाकिस्तान के विदेश विभाग ने कहा कि यह वक्तव्य सिंह की एक साक्षात्कार में जम्मू-कश्मीर के बारे में की गयी टिप्पणियों की प्रतिक्रिया में जारी हुआ है.
भारत इस रुख पर बरकरार है कि पूरा जम्मू-कश्मीर देश का अभिन्न अंग है जिसमें वे क्षेत्र भी शामिल हैं जिन पर पाकिस्तान ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है. पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे का हल संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुरूप निकालने पर जोर देना बंद कर दिया था. तब मुद्दे के हल को लेकर पर्दे के पीछे संपर्कों के जरिये कदम उठाने के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई थी. मौजूदा पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी नीत सरकार ने समान तरह का रुख अपनाया लेकिन गत वर्ष मुंबई में आतंकवादी हमले के मद्देनजर भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में तल्खी आने के बाद उसने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के कार्यान्वयन पर जोर देना शुरू कर दिया.