कोयला घोटाले में दिल्ली की स्पेशल सीबीआई कोर्ट से दोषी करार झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की सजा पर सुनवाई 16 दिसंबर तक टाल दी गई. मधु कोड़ा के साथ पूर्व केंद्रीय कोयला सचिव एच सी गुप्ता को भी दोषी ठहराया गया है. गुप्ता ने ये तथ्य छुपाया था कि एक कोल ब्लॉक को स्क्रीनिंग कमेटी ने झारखंड सरकार के जरिए अलॉट किया था, जबकि कोयला मंत्रालय की ओर से इसका अनुमोदन नहीं किया गया था.
गुप्ता ने ये जानकारी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी छुपाई थी. ऐसा ही कुछ मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही उनके तत्कालीन प्रधान सचिव टी के ए नायर ने भी किया था. नायर ने सांसद विजय दर्डा से जुड़े ग्रुप को कोल ब्लॉक का आवंटन करते वक्त किया था. उन्होंने इस कोल ब्लॉक को आवंटित करने की जानकारी मनमोहन सिंह को नहीं दी थी जबकि उस वक्त कोयला मंत्रालय की जिम्मेदारी उन्हीं पर थी.
प्रधान सचिव के हाथ में था कोयला मंत्रालय!
इंडिया टुडे की पहुंच एम एल शर्मा कमेटी की रिपोर्ट तक है जिसमें कई हैरान करने वाले तथ्य मौजूद हैं. जैसे कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 2G या कोयला घोटाला में कुछ भी गलत कार्य से खुद को दूर रखने के लिए इतने उत्सुक थे कि उन्होंने अपने पास मौजूद कोयला विभाग की पूरी जिम्मेदारी अपने प्रधान सचिव टी के ए नायर को सौंप दी थी. ऐसे ही कई हैरान करने वाले तथ्य एम एल शर्मा कमेटी की उस रिपोर्ट में शामिल हैं जो सुप्रीम कोर्ट को इस साल के शुरू में सौंपी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कोयला घोटाले की जांच करने वाली सीबीआई की एसआईटी (विशेष जांच टीम) से चार हफ्ते में सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट मांगी है.
एसआईटी की ओर से इस सारी जानकारी को अपनी रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा जो सुप्रीम कोर्ट को सौंपी जाएगी. एम एल शर्मा कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक एक कोल ब्लॉक जो सांसद विजय दर्डा को आवंटित किया गया था वो वास्तव में टी के ए नायर ने मंजूरी दी थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस कोल ब्लॉक से जुड़ी फाइल को प्रधानमंत्री के पास नहीं भेजा गया था. इस तरह की बात को सरकारी बोलचाल में कार्यपालिका की शक्तियों का पूर्ण उल्लंघन माना जाता है.
मनमोहन सिंह उस वक्त कोयला मंत्री भी थे जब ये कोल ब्लॉक आवंटित किया गया. शीर्ष सीबीआई अधिकारियों के मुताबिक कोल ब्लॉक्स को तत्कालीन प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव की ओर से आवंटित किए जाने के मामले की नए सिरे से जांच की जा रही है. 'फाइल्स का निरीक्षण किया गया है और ऐसा लगता है कि एएमआर ग्रुप को आवंटित किया गया कोल ब्लॉक, प्रधानमंत्री ने नहीं बल्कि पीएमओ में तैनात एक अधिकारी ने किया था. फाइल पर प्रधानमंत्री या उनकी ओर से किसी ने दस्तखत भी नहीं किए थे. बहुत सारे मुद्दों में से ये कुछ हैं जिनकी नए सिरे से अब जांच की जा रही है.'
डॉ. मनमोहन सिंह ने नहीं दी प्रतिक्रिया
टी के ए नायर ने इस मुद्दे पर कुछ बोलने से इनकार करते हुए इंडिया टुडे से कहा, तथ्यात्मक स्थिति संबंधित फाइलों में मौजूद है जो कि पीएमओ और कोयला मंत्रालय के पास से उपलब्ध हो सकती हैं.इस संबंध में जब डॉ मनमोहन सिंह से प्रतिक्रिया लेनी चाही तो ईमेल और फोन कॉल्स का कोई जवाब नहीं मिला.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने एम एल शर्मा कमेटी का गठन सीबीआई के पूर्व प्रमुख रंजीत सिन्हा से जुड़े मामले की जांच के लिए किया था. जांच का एक बिंदु ये भी था कि क्या सिन्हा के आवास पर आने वाले विजिटर्स ने सीबीआई की जांच को प्रभावित किया था. सिन्हा के घर पर रखे गए विजिटर्स एंट्री रजिस्टर में ऐसे कई व्यक्तियों के अनेक बार हस्ताक्षर देखे गए जिनकी जांच सीबीआई कर रही थी. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के पूर्व विशेष निदेशक एम एल शर्मा को जांच का जिम्मा सौंपा था कि क्या इन विजिटर्स ने कोयला घोटाले की जांच को प्रभावित किया.
एएमआर केस ग्रुप के उस कथित फर्जी दावे से जुड़ा है, जिसमें इसे कुल 1821 करोड़ रुपए की नेटवर्थ वाले लोकमत ग्रुप का हिस्सा बताया गया था. इसकी ओर से कोयला मंत्रालय को अपने आवेदन में ये भी कहा गया था कि उसके पास पहले से कोई कोल ब्लॉक नहीं है जबकि हकीकत में इसे पूर्व में 5 कोल ब्लॉक आवंटित हो चुके थे. मंत्रालय के कनिष्ठ अधिकारियों की ओर से इन अनियमितताओं की ओर ध्यान दिलाए जाने के बावजूद तत्कालीन कोयला सचिव एच सी गुप्ता (केस में अभियोगी बनाए गए पहले नौकरशाह) ने एएमआर ग्रुप के दावों पर यकीन किया. इसमें तत्कालीन कोयला राज्य मंत्री संतोष बागरोडिया ने पुश करने का काम किया.
सिन्हा के घर पर बागरोडिया 46 बार पहुंचे थे. वहीं विजय दर्डा सिन्हा के घर पर तीन बार और दर्डा के बेटे 12 बार पहुंचे थे. इत्तेफाक से ये वही वक्त था जब सिन्हा को दर्डा और बागरोडिया के खिलाफ केस बंद करने को फैसला लेना था. एम एल शर्मा कमेटी की रिपोर्ट कहती है, सीबीआई की ओर से दाखिल क्लोजर रिपोर्ट्स को विशेष जज ने मंजूर नहीं किया था.