प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत और चीन के बीच आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए 7 सू़त्री करार सिद्धांतों का जिक्र करते हुए कहा कि दोनों देशों को एक-दूसरे के हितों और संप्रभुता के प्रति संवेदनशीलता दिखानी चाहिए. उन्होंने कहा कि सीमा संबंधी मसलों को सुलझाने के लिए भारत-चीन को जल्द कदम उठाने चाहिए.
मनमोहन सिंह ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सेंट्रल पार्टी स्कूल में 'भविष्य के नेताओं' को संबोधित करते हुए कहा कि गठबंधन और नियंत्रण के पुराने सिद्धांत अब प्रासंगिक नहीं रह गए हैं.
उन्होंने कहा, ‘भारत और चीन को रोका नहीं जा सकता. हमारा हाल का इतिहास इसका गवाह है और न ही हमें दूसरों को रोकने के बारे में सोचना चाहिए.’
भारत-चीन में सीमा पार की नदियों पर समझौता
भारत और चीन ने दोनों देशों से होकर गुजरने वाली नदियों पर सहयोग को मजबूत करने के इरादे से एक समझौता किया है, जिसका उद्देश्य ब्रह्मपुत्र पर बन रहे नए बांध पर भारत की चिंताओं को दूर करना और बाढ़ के आंकड़ों का आदान-प्रदान करना है.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग के बीच बातचीत के बाद इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. दोनों देशों ने एक-दूसरे के यहां से गुजरने वाली नदियों के बारे में मौजूदा विशेषज्ञ समिति के जरिए सहयोग और बढ़ाने पर सहमति जताई, ताकि एक-दूसरे को बाढ़ के आंकड़े उपलब्ध कराए जा सकें और आपात स्थिति से निपटने का कार्यक्रम तय हो सके.
नए समझौते के तहत, चीनी पक्ष ब्रह्मपुत्र की बाढ़ के बारे में अधिक आंकड़े उपलब्ध कराने पर सहमत हो गया. अब वे मई से अक्टूबर तक के आंकड़े उपलब्ध कराएगा, जबकि पहले वह साल 2008 और 2010 में हुए समझौतों के अनुसार जून से अक्टूबर तक के आंकड़े उपलब्ध कराता था.
चीन ने भारत को आश्वासन दिया कि वह ब्रह्मपुत्र और सतलुज जैसी सीमापारीय नदियों के मामलों पर उसकी चिंताओं को ध्यान में रखेगा.
यह आश्वासन राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उस समय दिया, जब मनमोहन सिंह उनसे मिले और विभिन्न मामलों पर विचार-विमर्श किया.
बैठक के बारे में संवाददाताओं को जानकारी देते हुए विदेश सचिव सुजाता सिंह ने कहा कि भारत चीन के साथ यह समझौता करके खुश है. इसके जरिए ब्रह्मपुत्र और सतलुज जैसी सीमापारीय नदियों के बारे में महत्वपूर्ण जल-विज्ञान संबंधी आंकड़े साझा किए जा सकेंगे. उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति शी ने प्रधानमंत्री को बताया कि वह हमारी चिंताओं का ध्यान रखेंगे.’
इस मामले में सहयोग के प्रति चीन की संजीदगी के बारे में पूछे जाने पर सुजाता ने कहा कि भारत को आंकड़े मिल रहे हैं, अब उनकी अवधि बढ़ानी होगी.
उन्होंने कहा कि इस समझौते की प्रासंगिकता यह है कि इस क्षेत्र में हमने नई संभावनाएं खोल दी हैं.
भारत चीन की और बांध बनाने की योजनाओं पर चिंता व्यक्त कर चुका है. भारत को आशंका थी कि ये बांध बनने से तिब्बत से बहने वाली इस हिमालयी नदी के पानी का बहाव बाधित होगा.
दूसरी ओर चीन ने भारत को आश्वस्त किया कि उसके बांध नदी परियोजना का ही हिस्सा हैं और ये पानी रोकने के लिये नहीं बने हैं.
नदी जल समझौते के अलावा भारत और चीन ने अन्य कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिनमें बिहार के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना संबन्धी समझौता शामिल है, जिसमें चीन एक अहम भागीदार होगा.
दोनों पक्षों ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान, सड़क परिवहन और राजमार्ग क्षेत्र में सहयोग, भारत में चीनी ऊर्जा उपकरण सेवा केन्द्र और दिल्ली और बीजिंग तथा बैंगलोर और चेंगदू तथा कोलकाता और कुमिंग के बीच सिस्टर सिटी (करीबी रिश्ते) बनाने पर सहमति के बारे में समझौता किया.