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मनमोहन-सोनिया के बीच ये दरार अच्‍छी है?

बात कांग्रेस के भीतर चल रही सियासत की. पिछले कुछ दिनों में जिस तरीके से खबरें सामने आई उससे ऐसा लगने लगा कि सोनिया और मनमोहन सिंह के बीच दरार है और वो उभर कर अब सामने भी आ गयी है. कांग्रेस की तरफ से सफाई तो आई, लेकिन उससे कहीं ज्यादा बड़े सवाल उठ खड़े हुए. सवाल ये कि क्या दरार की इन खबरों के पीछे भी छवि की सियासत है. क्या सचमुच ये दरार कांग्रेस के लिए अच्छी है.

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बात कांग्रेस के भीतर चल रही सियासत की. पिछले कुछ दिनों में जिस तरीके से खबरें सामने आई उससे ऐसा लगने लगा कि सोनिया और मनमोहन सिंह के बीच दरार है और वो उभर कर अब सामने भी आ गयी है. कांग्रेस की तरफ से सफाई तो आई, लेकिन उससे कहीं ज्यादा बड़े सवाल उठ खड़े हुए. सवाल ये कि क्या दरार की इन खबरों के पीछे भी छवि की सियासत है. क्या सचमुच ये दरार कांग्रेस के लिए अच्छी है. 

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मीडिया के कुछ हलकों में ये खबर आई है कि सोनिया गांधी के दबाव में दोनों मंत्रियों को हटाया गया है. ये सही नहीं है. मंत्रियों को हटाने का फैसला कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री दोनों का था'. ये बयान कांग्रेस महासचिव की ओर से आया है. ऐसे वक्त में जब इस बात की चर्चा गर्म है कि दोनों मंत्रियों को हटाने का फैसला सोनिया गांधी के दबाव में लिया गया.

अब सवाल ये उठता है कि कांग्रेस की ओर से ऐसी सफाई आई क्यों? क्या सचमुच इस फैसले से प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी  के बीच की दरार उभर कर सामने आ गयी है. क्या सचमुच ये फैसला मनमहोन सिंह की मर्जी के खिलाफ लिया गया?

माना जाता है कि रेल घूस कांड का दंश झेल रहे पवन बंसल और कोल घोटाले की जांच रिपोर्ट में घालमेल करने का आरोप झेल रहे अश्विनी कुमार प्रधानमंत्री के बेहद करीबी हैं. सूत्रों से ये भी खबर आम हुई कि प्रधानमंत्री नहीं चाहते थे कि ये दोनो मंत्री इस्तीफा दें. पीएम मानते थे कि बंसल पर सीधे आरोप लगे नहीं हैं, और अश्विनी कुमार पर सुप्रीम कोर्ट ने कोई निर्देश नहीं दिया है, ऐसे में इनके इस्तीफे की जरूरत नहीं. अश्विनी कुमार तो इस्तीफे के बाद भी यही जताते रहे कि वो निर्दोष हैं और पार्टी की खातिर कुर्बान हो गए.

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हालांकि पार्टी में ही एक धड़ा ऐसा उभर आया जो मंत्रियों के इस्तीफे के बाद खुल कर ऐलान करने लगा कि पीएम के करीबी मंत्रियों पर दाग तो जरूर है. कांग्रेस प्रवक्ता भक्तचरण दास ने कहा कि कार्रवाई कांग्रेस पार्टी करता है. सोनिया गांधी की लीडरशिप में इन चीजों को बर्दाश्त नहीं किया जाता, ये कल फिर प्रमाणित हो चुकी है.

तमाम नेताओं के बयान से साफ है कि कांग्रेस के भीतर सोनिया और गांधी परिवार की छवि बेदाग साबित करने की कसक है. दामाद पर लगे आरोपों का दंश झेल चुके गांधी परिवार की छवि, कड़े फैसले लेने वाली और भ्रष्टाचार पर समझौता ना करने वाले नेता की बनाने की कोशिश हो रही है.

नजर 2014 के चुनाव पर टिकी है, और यूपीए 2 के कार्यकाल में मनमोहन सिंह की साफ सुथरी छवि जिस कदर दागदार हुई है उससे वो कांग्रेस का चेहरा बचाए रखने में खास कामयाब नहीं होने वाले हैं. ऐसे में सवाल यही उठ रहे हैं कि क्या सोनिया और मनमोहन के बीच दरार की खबरें जानबूझ कर आम की गयी.

वरना क्या ऐसा हो सकता है कि सोनिया गांधी की मर्जी के बगैर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कांग्रेस के किसी मंत्री को अपनी कैबिनेट में बनाए रख सकते हैं? दोनों मंत्रियों की छुट्टी किए जाने के ऐलान से तीन घंटे पहले सोनिया खुद प्रधानमंत्री से मिलने गयीं थी. क्या सचमुच उन्हें किसी मंत्री की छुट्टी कराने के लिए प्रधानमंत्री के घर जाने की जरूरत थी? क्या ये देश को ये संदेश देने की कोशिश थी कि सोनिया की कोशिशों से ही इस्तीफा हुआ है?

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आगे की तस्वीर भी गौर करने लायक है. अश्विनी कुमार पर लगे आरोपों का सिरा प्रधानमंत्री तक भी पहुंचता है. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि कहीं जरूरत पड़ने पर मनमोहन सिंह की भी कुर्बानी की तैयारी तो नहीं हो रही?

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