बोर्ड एग्जाम के आते ही स्टूडेंट्स में एग्जाम फीवर चढ़ जाता है. ऐसा ही फीवर कभी मुझे था जब मैंने पहली बार 10वीं के बोर्ड एग्जाम दिए थे.
मैथ्स के पेपर का दिन आते-आते तो मेरी हालत खराब हो गई थी. मैं रात भर यही सोचता रहा कि कैसे परीक्षा दूंगा, कहीं मैं फेल न हो जाऊं. सारी रात इसी डर में गुजारी. सुबह घर से निकलते हुए मां ने मेरे चेहरे के भाव पहचान लिए थे. मां ने मुझे परीक्षा के लिए आशीर्वाद देते हुए कहा कि यह एक छोटी-सी परीक्षा है, कोई जीवन की हार-जीत नहीं है. इसलिए हमेशा बिना किसी चिंता को दिमाग में रखकर तुम परीक्षा की तैयारी करो.
जीवन में कहीं भी जाओ किसी भी परीक्षा को दो, इस बात को याद रखो कि परीक्षा का डटकर सामना करना, डरकर नहीं. मां की इस बात को सुनकर मैंने अंदर कहीं बैठा लिया. परीक्षा भी आराम से दी, नंबर भी अच्छे आए. उस दिन का सबक मेरे जीवन में हमेशा काम आता है. आज सालों बाद जब मैं परीक्षा देने स्टूडेंट्स को देखता हूं तो वही समझता हूं जो मेरी मां ने मुझसे कहा था.
ये कहानी है मनीष की जिन्होंने हमसे अपनी परीक्षा से जुड़ा अनुभव साझा किया. आपके पास भी इससे जुड़ा कोई अनुभव है तो aajtak.education@gmail.com पर भेज सकते हैं, जिन्हें हम अपनी वेबसाइट www.aajtak.in/education पर साझा करेंगे.