18 जुलाई से शुरू हो रहे मॉनसून सत्र में सरकार को घेरने के लिए विपक्ष ने अपनी तैयारी पूरी कर ली है. सत्र शुरू होने से ठीक पहले सोमवार को 13 विपक्षी पार्टियों ने बैठक की. बैठक में सरकार को किन मुद्दों पर घेरना है इसपर चर्चा की गई.
सत्र में विपक्षी पार्टियां राफेल डील, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी से लेकर ललित मोदी और विजय माल्या जैसे भ्रष्टाचार के मामले उठाएंगी. इसके अलावा हायर एजुकेशन में एससी-एसटी और ओबीसी के आरक्षण को खत्म करने का सवाल भी उठेगा. इसके साथ ही विपक्षी पार्टियां मॉब लिंचिंग, दलित उत्पीड़न, महिलाओं के खिलाफ अत्याचार जैसे मुद्दे भी संसद में उठाएगी.
यह तो रही विवादों की बात. लेकिन अगर सवालों के लिहाज से देखें तो विपक्ष को लगता है कि पिछले संसद सत्र में सरकार ने अपने सहयोगी दलों के जरिए विरोध प्रदर्शन और हंगामा कराया और ठीकरा संसद नहीं चलने का विपक्ष पर फोड़ दिया. इसलिए विरोधी दलों ने तय किया है कि इस बार संसद नहीं चली तो जिम्मेदारी सरकार की होगी और इस लिहाज से वह लगातार बयानबाजी भी करेंगे, मुद्दे भी उठाएंगे और अपनी बात भी कहेंगे.
इसी आधार पर विपक्षी दलों ने तय किया कि अगर भविष्य में संसद नहीं चली, हंगामा हुआ तो इसकी जिम्मेदारी सरकार पर डाली जाए. संसद नहीं चलने की जिम्मेदारी सरकार की होगी. इस बात पर सभी विपक्षी दलों ने सहमति जताई और तय किया कि हम तो हर मुद्दे पर बहस चाहते हैं. उदाहरण पिछले सत्र का दिया गया. जब सरकार की सहयोगी तेलुगू देशम पार्टी के मंत्री विरोध कर रहे थे. हालांकि अब तेलुगू देशम पार्टी सरकार से बाहर है. पर विपक्ष को लगता है कि सरकार उनके मुद्दों का सामना नहीं कर सकती, इसलिए वर्तमान सहयोगी दलों के साथ ही ऐसे दलों का सहारा लेकर हंगामा करा सकती है और संसद चलने से रोक सकती है.
इसके अलावा विपक्षी दलों ने इस बात पर भी चर्चा की कि राज्यसभा में उपसभापति का पद चुनावी लिहाज से किसको दिया जाए. सूत्रों के मुताबिक बीजेपी ने शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार को आगे बढ़ाने का फैसला किया है, जिसके बाद विरोधी दल TMC या DMK के उम्मीदवार के पक्ष में हैं.