मई 2014 में केंद्र में मोदी सरकार ने सत्ता संभाली तो कुछ महीने बाद ही असम में उग्रवादियों ने सिलसिलेवार हमले कर 80 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. अब ये ‘शैतान’ फिर से जाग उठे हैं. वो भी ऐसे समय में जब करीब दो महीने पहले ही असम में बीजेपी की सरकार बनी है. बिहार विधानसभा चुनाव में हार के बाद बीजेपी के लिए नाक का सवाल बन चुके असम चुनाव के दौरान पीएम मोदी ने भी खूब मेहनत की और पूर्वोत्तर में पहली बार अपनी पार्टी को सत्ता सौंपने में कामयाब हुए.
कई मासूमों को फिर उतारा मौत के घाट
लेकिन असम का कोकराझार शहर शुक्रवार को ताबड़तोड़ गोलियों और ग्रेनेड के धमाके से गूंज उठा. बालाजान तिनियाली बाजार में ऑटो रिक्शा में आए नकाबपोश हमलावरों ने एके-47 से फायरिंग की जिसमें 13 लोग मारे गए और 50 घायल बताए जा रहे हैं. हालांकि, एक हमलावर मारा गया है लेकिन उसके साथी फरार हो गए हैं जिनकी तादाद 3-4 बताई जा रही है. सेना और स्थानीय पुलिस उनकी तलाश में जुट गई है.
शैतानों ने किए कई हमले
शुरुआती रिपोर्टों के मुताबिक हमलावर उग्रवादी संगठन एनडीएफबी (एस) यानी नेशनल डेमोक्रैटिक फ्रंट के सोंगबजीत धड़े के थे. इस संगठन ने करीब दो साल पहले सूबे में एक के बाद एक कई हमले किए थे जिनमें 80 से ज्यादा लोग मारे गए थे. ये हमले 23 दिसंबर 2014 को चिरांग, सोनितपुर और कोकराझार में हुए थे. उसी साल मई में इस तरह के हमले प्रवासी मुसलमानों पर हुए थे, जब दिल्ली में 10 साल बाद नई सरकार प्रचंड बहुमत के सहारे सत्ता में आ रही थी. लेकिन दिसंबर 2014 का हमला पूर्वोत्तर भारत के इतिहास में सबसे बड़ा नरसंहार था.
खुफिया अलर्ट के बाद भी हुआ हमला
अलग बोडोलैंड की मांग को लेकर हिंसा पर उतारू यह उग्रवादी संगठन दो साल बाद फिर खूनी दस्तक देने वाला है, इस बारे में खुफिया अलर्ट स्थानीय पुलिस को पहले ही मिल चुका था. हाल के दिनों में सुरक्षाबलों ने एनडीएफबी के कई उग्रवादियों को मार गिराया था और कई गिरफ्तार किए गए थे. ऐसे में आशंका थी कि उग्रवादी संगठन कोई बड़ा हमला कर सकता है.
कुछ ने डाले हथियार लेकिन...
एनडीएफबी दावा करता है कि वो बोडो समुदाय के लोगों का रहनुमा है जो असम के मूल निवासी हैं. असम का आदिवासी समाज मुख्य तौर पर चाय बागान में वर्कर के तौर पर काम करता है. इनमें कुछ ब्रिटिश राज के दौरान लाए गए मजदूरों के वंशज हैं जबकि कुछ देश के अन्य हिस्सों से प्रवासी मजदूर के तौर पर यहां काम करने आए लोग हैं. स्वायत्त बोडोलैंड की मांग को लेकर दशकों से खूनी हिंसा में शामिल इन उग्रवादियों में से कइयों ने तो हथियार डाल दिए लेकिन सोंगबजीत की अगुवाई वाले धड़े यानी एनडीएफबी (एस) ने हथियार डालने से इनकार कर दिया.
23 दिसंबर की वो मनहूस शाम
एनडीएफबी के उग्रवादियों ने 23 दिसंबर 2014 को शाम 6 बजे के करीब असम के कोकराझार, सोनितपुर और चिंराग जिलों में हमला कर कम से कम 81 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. इनमें ज्यादातार आदिवासी और ईसाई समुदाय के थे. ये हमले ऐसे वक्त हुए जब ये लोग क्रिसमस की तैयारियों में जुटे थे. करीब ढाई दशक से उग्रवादी हिंसा की आग में जल रहे असम में इस हमले की गंभीरता इस बात से भी साफ होती है कि 1992 में सालभर में कुल 80 और 1993 में 74 लोग मारे थे.
फिर हिंसा का डर
23 दिसंबर वाली घटना के बाद आदिवासी समुदाय में काफी रोष पैदा हुआ और जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए. इसके बाद भड़की हिंसा में आदिवासी और बोडो समुदाय के लोगों ने एक-दूसरे के घरों को आग के हवाले करना शुरू कर दिया. केंद्र सरकार को हालात पर काबू पाने के लिए सीआरपीएफ और सेना की अतिरिक्त टुकड़ियां तैनात करनी पड़ीं. घटना की जांच एनआईए को सौंपनी पड़ी. हालांकि, इस नरसंहार को अंजाम देने वाले एनडीएफबी के दो खूंखार उग्रवादियों समेत 6 सदस्यों को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया था. शुक्रवार की घटना के बाद भी आशंका है कि दो साल पहले जैसी आगजनी और हिंसा का दौर न शरू हो जाए.