माओवादियों की सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से भारतीय लोकतंत्र को उखाड़ फेंकने की योजना है और 2050 तक वह सरकार पर नियंत्रण करना चाहते हैं.
यह बात शुक्रवार को केंद्रीय गृह सचिव गोपाल कृष्ण पिल्लई ने कही. ‘लेफ्ट विंग एक्सट्रीमिज्म इन इंडिया’ पर एक सेमिनार को संबोधित करते हुए पिल्लई ने कहा कि विध्वंसक गतिविधियां चलाने के लिए माओवादियों को कुछ पूर्व सैनिकों का सहयोग भी मिलने की आशंका है. उन्होंने कहा, ‘भारतीय गणतंत्र को वह कल या परसों उखाड़ फेंकना नहीं चाहते.
एक पुस्तिका के अनुसार उनकी रणनीति 2050 की है जबकि कुछ दस्तावेजों के अनुसार यह 2060 है.’ पिल्लई के अनुसार नक्सली 2012 या 2013 को अपना लक्ष्य बनाकर नहीं चल रहे. यह लंबी धीमी योजना है और पिछले 10 वर्षों में उन्होंने धीरे-धीरे अपनी गतिविधियों को अंजाम दिया है.
उन्होंने कहा, ‘अब वह भारतीय अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. लेकिन वह इसे अभी नहीं करना चाहते. वह जानते हैं कि अगर उन्होंने ऐसा किया तो उन पर कड़ी कार्रवाई होगी. वह देश की ताकत का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं. इसलिए वह धीरे-धीरे चल रहे हैं.’ {mospagebreak}
गृह सचिव ने कहा कि माओवादी किसी भी देश की सेना की तरह अच्छी तरह प्रशिक्षित एवं प्रतिबद्ध हैं और आशंका है कि कुछ पूर्व सैनिक उनकी सहायता कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘वह काफी प्रतिबद्ध हैं, उच्च प्रशिक्षित हैं. मुझे विश्वास है कि कुछ पूर्व सैनिक या कुछ लोग उनके साथ हैं.’ इसके लिए कारण बताते हुए पिल्लई ने कहा कि कोई हमला शुरू करने से पहले नक्सलवादी पूरे अभियान का विश्लेषण करते हैं. उन्होंने कहा, ‘प्रत्येक हमले के बाद वह इसका विश्लेषण करते हैं. विश्लेषण किसी देश की सशस्त्र सेना के स्तर का होता है.’
गृह सचिव ने कहा कि पिछले वर्ष नक्सली हिंसा में 908 लोगों की जान गई जो 1971 के बाद सबसे ज्यादा है और यह इस वर्ष ज्यादा तो अगले वर्ष कम हो सकता है. पिल्लई के अनुसार भले ही संयुक्त नक्सल विरोधी अभियान जारी है लेकिन नक्सलियों को अभी तक कोई बड़ा झटका नहीं लगा है और सरकार को उन इलाकों पर नियंत्रण करने में सात से आठ वर्ष लग सकते हैं जिन पर माओवादियों ने कब्जा कर रखा है.
उन्होंने कहा, ‘अभियान में कट्टर माओवादियों के पांच फीसदी को भी निशाना नहीं बनाया गया है. वास्तविक हथियारबंद कैडर अब भी सामने नहीं आए हैं .’ उन्होंने कहा कि जब तक उन्हें खतरा महसूस नहीं होगा, वे वार्ता के लिए नहीं आएंगे और शांति को लेकर वह जो भी बयान दे रहे हैं उसमें वे गंभीर नहीं हैं.