दिल्ली की एक कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि वैवाहिक बलात्कार की शिकार महिला के साथ सिर्फ इसलिए पक्षपात नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि आरोपी उसका पति है. अदालत ने कहा कि उसके साथ अन्य बलात्कार पीड़ितों जैसा ही व्यवहार होना चाहिए.
अदालत ने अपनी गर्भवती पत्नी के साथ यौनाचार के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए यह व्यवस्था दी. अदालत ने कहा कि विधायिका को अभी देश की महिलाओं पर होने वाले वैवाहिक यौन शोषण के मामलों के बारे में गंभीरता से सोचना बाकी है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि एक पीड़ित पत्नी, जिसका यौन शोषण किया जा रहा है और जो न्यायिक प्रणाली का सहारा लेती है, किसी तरह की प्रशासकीय सहायता की हकदार नहीं है. जो इस तरह की अन्य पीड़िताओं को पहले से मिल रही हैं.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लाउ ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वह केशव पुरम की रहने वाली इस महिला की जिम्मेदारी ले, जिसने अपने पति के खिलाफ मामला दर्ज कराया है कि उसने शराब के नशे में उसके साथ कथित रूप से अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित किए और वह भी तब जब वह गर्भवती थी.
अदालत ने कहा कि वह सरकार की जिम्मेदारी हैं और उसकी देखभाल भी ठीक उसी तरह की जानी चाहिए, जैसे इस तरह के यौन अपराधों से जूझ रही अन्य महिलाओं की की जाती है. सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती. महिला के साथ सिर्फ इसलिए भेदभाव नहीं किया जा सकता कि वह यौन अत्याचारी की पत्नी है.
अदालत ने सवाल किया, ऐसे व्यक्ति के साथ नरमी कैसे बरती जा सकती है, जिसकी पत्नी जो गर्भवती है और पिछले नौ साल से भी ज्यादा समय से इस यातना को झेल रही है. न्यायाधीश ने कहा कि उसके खिलाफ लगाए गए आरोप गंभीर हैं और ऐसे समय में उसे रिहा करना न तो सही है और न ही उचित. सिर्फ इसलिए कि पीड़िता अब यह चाहती है कि आरोपी जेल से बाहर आए, इसका यह मतलब नहीं है कि अदालत उसकी बात मानने के लिए बाध्य है. इसलिए जमानत की अर्जी नामंजूर की जाती है.
जमानत पर सुनवाई के दौरान महिला अदालत में आई और कहा कि उसके पति को रिहा किया जाए क्योंकि उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है और वह पूरी तरह से अपने पति पर निर्भर है. अदालत ने हालांकि कहा कि गर्भवती होने के बावजूद महिला अपने वकील के साथ पेश हुई. इससे पता चलता है कि उस पर अपने ससुराल वालों का भारी दबाव है, जिनके साथ वह रहती है.