आज भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का शहीद दिवस है. 23 मार्च 1931 को तीनों क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया गया था.
आठ अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल एसेंबली में बम फेंके. घटना के बाद भगत सिंह वहां से भागने के बजाय वह खड़े रहे और खुद को अंग्रेजों के हवाले कर दिया. करीब दो साल जेल में रहने के बाद 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी पर चढ़ा दिया गया.
क्रांतिकारियों की इस शहादत को आज पूरा देश याद कर रहा है. लोग सोशल मीडिया पर इन क्रांतिकारियों से जुड़े किस्से, इनके बयानों को शेयर कर रहे हैं.
भगत सिंह के कथन का जिक्र करते हुए हैदर अली फेसबुक पर लिखते हैं,
'अहिंसा को आत्म-बल के सिद्धांत का समर्थन प्राप्त है जिसमे अंतत: प्रतिद्वंदी पर जीत की आशा में कष्ट सहा जाता है. लेकिन तब क्या हो जब ये प्रयास अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल हो जाएं? तभी हमें आत्म-बल को शारीरिक बल से जोड़ने की ज़रुरत पड़ती है ताकि हम अत्याचारी और क्रूर दुश्मन के रहमोकरम पर ना निर्भर करें.'
हैदर अली भगत सिंह के एक और कथन का जिक्र करते हैं,
'किसी भी कीमत पर बल का प्रयोग ना करना काल्पनिक आदर्श है और नया आन्दोलन जो देश में शुरू हुआ है और जिसके आरम्भ की हम चेतावनी दे चुके हैं वो गुरु गोबिंद सिंह और शिवाजी, कमाल पाशा और राजा खान, वाशिंगटन और गैरीबाल्डी, लाफायेतटे और लेनिन के आदर्शों से प्रेरित है.'
इस तरह ध्रुव गुप्त ने शहादत दिवस को याद करते हुए जोश मलीहाबादी का मशहूर शेर शेयर किया है. 'ऐ वतन पाक वतन रूहे-रवाने-एहरार ऐ कि ज़र्रों में तिरे बू-ए-चमन रंगे बहार...
एक और शख्स विवेकानंद सिंह ने फेसबुक पर लिखा है, 'शहादत की याद में, शहीद तुम याद आ गये'
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